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बांदा: खेत में बनी मेड़, तो लौटी किसानों की खुशहाली जल के इसी महत्व

देश में जल संकट गहराता जा रहा है। पीने से लेकर खेती तक के लिए लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। वैसे जल संकट की ये समस्या देश के किसी एक हिस्से में नहीं है, बल्कि लगभग हर राज्य जल संकट का सामना कर रहा है। सबसे ज्यादा संकट उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, झारखंड़, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि में है। गर्मी बढ़ने के साथ ही समस्या और बढ़ जाती है। कई इलाकों में तो किसान पानी के लिए बरसात की राह ताकते रहते हैं, लेकिन पर्याप्त बारिश न होने पर उनके हाथ मायूसी लगती है और उन्हें खेती में नुकसान उठाना पड़ता है। हालांकि भारत लगभग 90 प्रतिशत भूजल का उपयोग सिंचाई के लिए करता है, जो कि बेहद गलत है। ये जल संकट को बढ़ावा दे रहा है। बरसात के पानी का उचित उपयोग खेतों में शायद ठीक से नहीं किया जाता है। ये सीधे तौर पर जागरुकता का अभाव और कृषि तकनीकों की उपलब्धता का अभाव है, लेकिन उत्तर प्रदेश के बांदा के लोगों/किसानों ने जल संरक्षण का पारंपरिक तरीका अपनाया है, जो जलसंरक्षण के साथ ही फसल उत्पादन में सहायक साबित हो रहा है।

उत्तर प्रदेश का बांदा हर साल भीषण गर्मी और पानी की कमी से जूझता है। भारत में जब भी जल संकट की बात होती है तो ‘बांदा’ का नाम जरूर आता है। गर्मियों में पानी की समस्या यहां इतनी बढ़ जाती है कि लोगों को पीने और खेती के लिए बूंद बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ता है। लेकिन इस बार बांदा में जल संरक्षण के लिए अनूठे प्रयोग किए जा रहे हैं। जल संचयन के लिए पानी चैपाल लगाई जा रही है। नियमित रूप से तालाबों की साफ-सफाई की जाती है। गाद को तालाब से बाहर निकाला जाता है। तो वहीं जल संरक्षण का ये कार्य सुनियोजित ढंग से करने के लिए जल सेवकों का गठन किया गया है। 

बांदा जिला के बबेरू ब्लॉक में पड़ने वाले गांव अंधाव में ‘खेत का पानी खेत में – गांव का पानी गांव में’ अभियान के तहत जल संरक्षण के लिए नया प्रयोग शुरू किया गया है। गांव में 300 बीघे खेतों में मेड बनाई है। मेड़ों के माध्यम से बरसात के पानी को संग्रहित किया जाएगा। हालांकि गांव में पहले ऐसा नहीं होता था। 

पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले पत्रकार व शोध छात्र रामबाबू तिवारी ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि 

इस इलाके के खेतों में बरसात का पानी रुकता नहीं था। बारिश में जो पानी बरसाता भी था, वो बहता हुआ नालों के माध्यम से यमुना में चला जाता था। जिस कारण गांव के लोग धान नहीं बो पाते थे। 

उन्होंने बताया कि इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले मैंने 7 हजार रुपये खर्च करके अपने खेत में मेड़ बनवाई। इस कार्य के साथ गांव के लोगों को जोड़ने की सोची। गांव के युवाओं के साथ बातचीत की और योजना को लागू करने के लिए रणनीति बनाई। गांव के अन्य लोगों को इस बारे में बताया तो वें सहमत हो गए। सहमत होना लाजमी भी था, क्योंकि भीषण जल संकट के बीच गांव में फसल उत्पादन समस्या बन गया था। इसके बाद अन्य लोगों/किसानों ने भी अपने खेतों में मेड़ बनाई। इस अभियान को लोग बिना की समस्या के स्वीकार करते गए और अब तक 300 बीघा से ज्यादा खेतों में मेड़ बनाई जा चुकी है। 

योजना के फायदे के बारे में बताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि खेत में बरसात का पानी भर जाने के बाद वे लोग धान की खेती कर सकेंगे। बरसात के दौरान खेतों को अब पहले की अपेक्षा ज्यादा पानी मिल रहा है। यानी एक व्यवस्थित तरीके से खेती हो रही है। इससे फसल उत्पादन बढ़ा है। खेतों में पर्याप्त पानी का होना यहां पलायन को भी रोकेगा। रामबाबू का कहना है कि खेतों में रुके पानी की वजह से जमीन में नमी रहेगी। नमी बनाए रखने के लिए मेड़ों पर पेड़ लगाए जा रहे हैं। गांव में पानी की उपलब्धता या जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। 

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तिवारी ने बताया कि जल ही जीवन है। जल के इसी महत्व को हम लोगों को बता रहे हैं और जल संरक्षण के हर संभव प्रयास कर रहे हैं। मेड़ बनाने के काफी फायदे देखने को मिल रहे हैं। गांव में ही एक तालाब भी खुदवाया है, जो बरसात में पानी से भरने लगा है। ऐसे में पानी की समस्या काफी कम हुई है। किसानों के चेहरे भी खिल उठे हैं। 

एक नजर यहां के तालाबों पर 

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उन्होंने बताया कि इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले मैंने 7 हजार रुपये खर्च करके अपने खेत में मेड़ बनवाई। इस कार्य के साथ गांव के लोगों को जोड़ने की सोची। गांव के युवाओं के साथ बातचीत की और योजना को लागू करने के लिए रणनीति बनाई। गांव के अन्य लोगों को इस बारे में बताया तो वें सहमत हो गए। सहमत होना लाजमी भी था, क्योंकि भीषण जल संकट के बीच गांव में फसल उत्पादन समस्या बन गया था। इसके बाद अन्य लोगों/किसानों ने भी अपने खेतों में मेड़ बनाई। इस अभियान को लोग बिना की समस्या के स्वीकार करते गए और अब तक 300 बीघा से ज्यादा खेतों में मेड़ बनाई जा चुकी है। 

योजना के फायदे के बारे में बताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि खेत में बरसात का पानी भर जाने के बाद वे लोग धान की खेती कर सकेंगे। बरसात के दौरान खेतों को अब पहले की अपेक्षा ज्यादा पानी मिल रहा है। यानी एक व्यवस्थित तरीके से खेती हो रही है। इससे फसल उत्पादन बढ़ा है। खेतों में पर्याप्त पानी का होना यहां पलायन को भी रोकेगा। रामबाबू का कहना है कि खेतों में रुके पानी की वजह से जमीन में नमी रहेगी। नमी बनाए रखने के लिए मेड़ों पर पेड़ लगाए जा रहे हैं। गांव में पानी की उपलब्धता या जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। 

तिवारी ने बताया कि जल ही जीवन है। जल के इसी महत्व को हम लोगों को बता रहे हैं और जल संरक्षण के हर संभव प्रयास कर रहे हैं। मेड़ बनाने के काफी फायदे देखने को मिल रहे हैं। गांव में ही एक तालाब भी खुदवाया है, जो बरसात में पानी से भरने लगा है। ऐसे में पानी की समस्या काफी कम हुई है। किसानों के चेहरे भी खिल उठे हैं। 

एक नजर यहां के तालाबों पर 

बुंदेलखंड़ की यमुना, केन, चन्द्रावल, बाघन, पयश्विनी, चान, बरदाहा एवं गरारा नदियों की कछारी दलदली भूमि में वर्षा ऋतु में धान की खेती की जाती है। जिले में जो तालाब हैं, वह खुदेलुआ एवं छोटे निस्तारी हैं जिनसे कृषि के लिये कम पानी लिया जाता है। प्रमुख तालाब निम्नांकित हैं-

1. नवाब टैंक बांदा- नवाब जुल्फिकार अली ने यह तालाब बनवाया था जो नगर का निस्तारी तालाब है।

2. अलवारा तालाब, राजापुर- चित्रकूट जनपद के ग्राम राजापुर में अलवारा जन निस्तारी तालाब है।

3. खार तालाब, सीमू- बवेरू परिक्षेत्र के सीमू ग्राम में खार तालाब है, जो खुदेलुआ है। एक बड़ी बँधिया-सा है, कम गहरा है। यह तालाब जाड़ों के अन्त तक सूख जाता है।

4. दुर्गा तालाब, तरौहा- दुर्गा तालाब कर्बी से 5 किलोमीटर की दूरी पर, तरौहा के निकट स्थित है। यह बड़ा तालाब है। जननिस्तारी तालाब होने के साथ ही इससे कृषि सिंचाई के लिये भी पानी लिया जाता है।

5. राजा तालाब, बांदा- राजा तालाब बांदा के बुन्देला राजा गुमान सिंह (भूरागढ़) ने बनवाया था। यह तालाब बस्ती के मध्य में था जिसके चारों ओर खिरकों के रूप में बस्ती थी। वर्तमान में बांदा नगर का विकास होने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।

6. फुटना तालाब, बड़ा कोटरा- यह चन्देली तालाब है। जो मऊ तहसील के अन्तर्गत है। यह तालाब फूट चुका है। इसीलिए लोग इसे फुटना तालाब कहते हैं।

7. कोठी तालाब, कटोेरा तालाब एवं गणेश तालाब, कर्वी- यह तालाब विनायक राव मराठा ने बनवाये थे। तालाब सुन्दर एवं जन निस्तारी है। गणेश तालाब पर गणेश मन्दिर है।

8. गौंड़ा का फूटा तालाब- यह तालाब नरैनी क्षेत्रान्तर्गत है जो चन्देल काल का है। यह दो पहाड़ों के मध्य छोटा बाँध बना कर बनाया गया है। यह सुन्दर बड़ा तालाब रहा, परन्तु जल भराव की अधिकता और देख-रेख की कमी के कारण फूट गया था जिससे इसे फूटा ताल कहा जाता है।

9. कालिंजर के तालाब- जिला बांदा तहसील नरैनी में कालिंजर पहाड़ पर कालिंजर किला है। किला की उत्तरी तलहटी में कालिंजर बस्ती है। कालिंजर किला भारत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। कालिंजर पहाड़ के ऊपर, किले के अन्दर के प्रांगण में पत्थर काट-काटकर अनेक सुन्दर तालाबों का निर्माण किया गया था। चन्देल नरेशों के बनवाये तालाबों में गंगा सागर, मझार ताल, राम कटोरा, कोटि तीर्थ तालाब, मृगधारा शनिकुंड, पांडु कुण्ड, बुढ़िया का ताल, भैरों बाबा की झिरिया (भैरों कुण्ड), मदार तालाब, ब्राम्हण तलैया (बिजली तालाब) प्रसिद्ध हैं। पहाड़ के नीचे बस्ती में बेला ताल एवं गोपाल तालाब हैं।

10. लोखरी के तालाब- जिला बांदा, तहसील मऊ के अन्तर्गत लोखरी ग्राम है। ग्राम की कालिका देवी पहाड़ी की तलहटी में चन्देलकालीन प्राचीन तालाब है। इसी के पास कोटा कंडेला मन्दिर के पास भी एक छोटा तालाब है जो जन-निस्तारी है।

11. मड़फा के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत मड़फा पहाड़ पर कालिंजर के समकाल का विशाल चन्देली किला है। किले के अन्दर मन्दिर से संलग्न पत्थर काट कर विशाल सुन्दर तालाब का निर्माण किया गया था, जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसी के पास एक छोटा तालाब भी है, जिसमें केवल वर्षा ऋतु में पानी रहता है।

12. रासिन के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत के रासिन कस्बा है, जो चन्देल काल में पहाड़ी पर था। चन्देल काल का एक तालाब पहाड़ पर पत्थर काट कर बनाया गया था। जो लम्बाकार है। एक दूसरा छोटा तालाब पहाड़ी के नीचे बलन बाबा मार्ग पर है।

13. लामा के तालाब- बांदा से चिल्ला मार्ग पर 13 किमी. की दूरी पर लामा ग्राम है, जहाँ 5 तालाब हैं जो बोलवा, धोविहा, गुमानी, मदाईन एवं इमिलिहा हैं। यह सब निस्तारी तालाब हैं।

14. अरहर एवं मानिकपुरा ग्रामों में भी छोटे-छोटे एक-एक तालाब हैं।



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