![दर्द जहां चोट करो वहां अरुणाचल में जाकर भारतीय सेना ने pla की कमजोर नस दबा दी 4 Digital education portal default feature image](https://i0.wp.com/educationportal.org.in/wp-content/uploads/2022/12/digital-education-portal-default-feature-image.png?fit=1200%2C630&ssl=1)
जब से पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनातनी शुरू हुई हुई है, लोग अब ये भी कयास लग रहे हैं कि कैसे ये लड़ाई पूर्वी भारत के मोर्चे तक भी बहुत पहुँच सकती है, जिसके पीछे कई बार अरुणाचल प्रदेश का भी उल्लेख हुआ है, क्योंकि लद्दाख के अलावा 1962 के युद्ध में अरुणाचल [तब NEFA] भी चीन से युद्ध की साक्षी बना था।
चीन दावा करता है कि भारत का अरुणाचल प्रदेश उसके तिब्बत का ‘दक्षिणी हिस्सा’ है और ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्वी लद्दाख की लड़ाई भारत-तिब्बत बॉर्डर के पूर्वी छोर पर भी तनातनी पैदा कर सकता है।
परंतु ऐसा हुआ नहीं है, क्योंकि चीन भली-भांति जानता है कि भारत से अरुणाचल में भिड़ना मतलब अपने डेथ वॉरेंट पर हस्ताक्षर करना है।
ET की रिपोर्ट के अनुसार भारत इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है और इसीलिए वह अरुणाचल प्रदेश में उन सभी जगहों पर तैनात है, जहां से 1962 में चीन ने घुसपैठ का प्रयास किया था। रिपोर्ट के अंश अनुसार, “इनमें से चार क्षेत्र – असापिला, लोंगजू, बीसा और माझा अप्पर सुबनसिरी जिले में स्थित है, जहां चीन की पीएलए ने एलएसी के एक छोर से दूसरे छोर तक बीसा जिले के जरिये पहले ही सड़क बना ली है।”
लेकिन असापिला क्षेत्र में भारत को किसी प्रकार की समस्या नहीं है। इसके बारे में विस्तार से बताते हुए ET ने कहा, “चीन पूरे असापिला क्षेत्र पर दावा करता है। लेकिन ऊंचे इलाके में स्थित यह क्षेत्र चीन और भारत दोनों के लिए संभाल पाना कठिन है और सर्दियों में यहाँ रहना लगभग असंभव है। अगर चीन ने यह गलती की, तो वे गोलियों से बाद में, और सर्दी से पहले मर जाएंगे।”
इसके अलावा भारत के पास तुलुंग ला और Yangtse क्षेत्र में और भी अधिक लाभ है, जो बॉर्डर के पास स्थित तवांग जिले के अंतर्गत आते हैं। इन दोनों क्षेत्रों में 1962 में चीन ने हमला किया था और इसीलिए ये दोनों क्षेत्र रणनीतिक रूप से काफी अहम है। अब भारत इन दोनों क्षेत्रों में काबिज है, क्योंकि 1962 में चीन ने NEFA क्षेत्र से पूर्णतया हाथ खींच लिए थे।
इसके अलावा भारत इन क्षेत्रों को पक्की सड़कों से जोड़ने में लगा हुआ है, जो भारत-चीन बॉर्डर तक सेना की पहुँच को और मजबूत कर सकती है। 2017 में भारत की बॉर्डर रोड संगठन ने सेला पास में दो सुरंगों का निर्माण शुरू कर दिया। इसके बारे में बात करते हुए अरुणाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा, “मैं कार्य प्रगति को देख बहुत प्रसन्न हूँ, आशा करता हूँ सब कुछ 2021 के अंत तक निपट जाएगा।”
इस सुरंग से एलएसी तक दूरी 10 किलोमीटर कम हो जाएगी। इसके अलावा तेज़पुर [जहां भारतीय सेना के 4 Corps के हेडक्वार्टर्स स्थित हैं] और तवांग तक की दूरी बहुत कम हो जाएगी। इसके अलावा सेला पास से होकर निकलने वाली सुरंग 171 किलोमीटर लंबी NH 13 बोमड़ी ला तवांग स्ट्रेच को एक ऑल वेदर रोड में परिवर्तित कर देगी, जो वाकरो और तवांग को जोड़ेगी। अब चाहे सर्दी आए या गर्मी, भारत मोर्चे पर तुरंत तैनात होने में अधिक समय नहीं लगाएगा।
पूर्वी लद्दाख में चीन की पहले से ही लंका लगी हुई है, लेकिन अब लगता है कि भारत अरुणाचल प्रदेश में भी चीन को पटक-पटक के धोने के लिए तैयार है। चीन जानता है कि जितनी समस्या उसे पूर्वी लद्दाख में नहीं है, उससे ज़्यादा उसे अरुणाचल में होगी। इसीलिए चीन पूर्वी लद्दाख में अड़ा हुआ है, ताकि बात अरुणाचल प्रदेश के मोर्चे तक न पहुंचे, और अभी तो सिक्किम के मोर्चे की बात ही नहीं हुई है।
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