संसद की एक स्थायी समिति ने देश की हजारों अदालतों में वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था के लिए निजी क्षेत्र की सेवाएं लेने की सिफारिश की है, लेकिन एक तबके में इसको लेकर अंदेशा भी.एक कार्गो कंपनी ने वर्चुअल सुनवाई (वीसी) में तकनीकी दिक्कतों के खिलाफ गुजरात हाइकोर्ट में अर्जी लगाई और अदालत ने सितंबर के पहले हफ्ते में कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की अहमदाबाद बेंच को फिजिकल हियरिंग यानी कोर्ट में आमने-सामने सुनवाई के मानक (एसओपी) तय करने के निर्देश दिए.
कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के बाद से देश की अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई का दौर आया और छह महीने बाद वास्तविकता यह है कि कभी वीडियो लिंक कट जाना तो कभी आवाज न आना, धुंधले वीडियो और टूट-टूटकर आती आवाज और कभी कनेक्शन कट जाना हर कोर्ट रूम की समस्या बन चुकी है. इससे वकील, मुवक्किल और न्यायाधीश तीनों परेशान हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है पुराना तकनीकी ढांचा, उपकरण और सॉफ्टवेयर, जिसका कि जिम्मा सरकारी एजेंसी नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स के पास है.
वर्चुअल कोर्ट के मामले में संसद की एक स्थायी समिति की अंतरिम रिपोर्ट सितंबर के पहले हफ्ते में आ चुकी है. इसमें कोर्ट में तकनीक के इस्तेमाल पर प्राइवेट कंपनियों की मदद लेने की सिफारिश की गई है.
इस समय देश में 14,000 से ज्यादा अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा नहीं है. इतनी बड़ी संख्या में उपकरणों का इंतजाम और उनके लिए निर्बाध इंटरनेट की व्यवस्था सरकार के लिए टेढ़ी खीर है.
जिला अदालतों में तकनीक की उपलब्धता का स्तर निराशाजनक है. 14 राज्यों की जिला अदालतों में ई-फाइलिंग हो रही है और 14 में परीक्षण चल रहा है. उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, मणिपुर, ओडिशा, बिहार, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, और उत्तराखंड की जिला अदालतों की फाइलों की स्कैनिंग नहीं हुई है.
स्थायी समिति की ‘फंक्शनिंग ऑफ वर्चुअल कोट्र्स/कोर्ट प्रोसीडिंग्स थ्रू वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग’ नाम की रिपोर्ट बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले समिति के सदस्य और जाने-माने वकील विवेक तन्खा ने इंडिया टुडे से कहा, ”एनआइसी के बलबूते वर्चुअल कोर्ट नहीं चल सकती. 4-4 घंटे सिस्टम रिस्टोर नहीं हो पाता है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सेवा और सॉफ्टवेयर असंतोषजनक हैं.
जिन प्लेटफॉर्म पर हाइकोर्ट काम कर रहे हैं उनमें सहूलियत नहीं है. प्लेटफॉर्म आसान होना चाहिए. इनमें डिस्टर्बेंस बहुत है. छह महीने में वर्चुअल कोर्ट का तकनीकी सिस्टम लेशमात्र आगे नहीं जा सका. इसका सिस्टम सरल और सहूलियत वाला होना चाहिए. बैंडविड्थ के साथ प्लेटफॉर्म और सॉक्रटवेयर भी बेहतर होना चाहिए. इसके लिए प्राइवेट कंपनियों को साथ लेना जरूरी है.’’
तन्खा कहते हैं, ”हमारे लोग अमेरिका जाकर वहां के सिस्टम चलाते हैं तो हम उनकी सेवाएं क्यों न लें! छह महीने में अदालतों में सवा 3 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग हैं और अभी तक वर्चुअल कोर्ट का कोई सिस्टम नहीं बन पाया.
यहां प्राइवेट सेक्टर और पब्लिक सेक्टर की डिबेट नहीं होनी चाहिए. सिस्टम सुचारु तरीके से चलाना हमारा मकसद है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह किस सेक्टर से हो रहा है. प्राइवेट सेक्टर भी आपका ही सेक्टर है.’’
समिति ने कहा कि वर्चुअल कोर्ट में शिफ्ट होने के लिए बड़े निवेश की जरूरत होगी, लिहाजा पीपीपी मॉडल को इसमें अपनाने की संभावनाएं देखी जा सकती हैं. कमेटी ने कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय वर्चुअल कोर्ट सुनवाई के लिए देसी सॉफ्टवेयर बनाए और भारी संख्या में दस्तावेजों के डिजिटल रखरखाव के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम के लिए निजी कंपनियों की मदद ले सकता है.
विधि मंत्रालय के न्याय विभाग के सचिव ने समिति के सामने माना कि इंटरनेट की उपलब्धता की समस्या खासकर ग्रामीण इलाकों में है और इसका सबसे बुरा असर जिला और अधीनस्थ न्यायालयों पर पड़ रहा है. तकनीकी अवरोधों पर न्याय विभाग के सचिव का कहना है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा के मामले में यह सच है कि वीडियो लिंक छह साल पुराने हैं.
ये आउटडेटेड हैं और हमारे पास जो लाइसेंस हैं वे भी सीमित संख्या में हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एनआइसी से सेंट्रलाइज्ड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ढांचा बनाने को कहा है जो कि जिला और अधीनस्थ अदालतों तक को जोड़ेगा और यह क्लाउड कंप्यूटिंग पर आधारित होगा. तन्खा कहते हैं, ”टीसीएस, विप्रो, इन्फोसिस, एचसीएल जैसी कंपनियां यहां पर मौजूद हैं. इनकी मदद ली जानी चाहिए.’’
डिजिटल जस्टिस सस्ता और तेजी से होता है. लेकिन साधनों का अभाव इसे बोझिल बना रहा है. कोलकाता हाइकोर्ट बार एसोसिएशन ने समिति को भेजे जवाब में बताया, कोलकाता हाइकोर्ट में 38 जज हैं लेकिन एक बार में सिर्फ 8 जज ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई कर पाते हैं. जिला अदालतों और मुफस्सिल कोर्ट्स में तो इंटरनेट कनेक्शन ही नहीं हैं, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तो दूर की बात है
कानूनी क्षेत्र में काम कर रहे संगठन दक्ष के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर सूर्यप्रकाश बी.एस. कहते हैं, ‘‘वर्चुअल कोर्ट के सिस्टम पर दबाव बढ़ता जा रहा है. यूजर्स ज्यादा और बैंडविड्थ और कैपेसिटी कम है. संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी तकनीकी और व्यावहारिक समस्याओं का जिक्र किया गया है. वर्चुअल कोर्ट सिस्टम का इस्तेमाल लगातार मुश्किल होता जा रहा है.
इसके लिए जितने पैसे और जिस स्तर की तकनीकी दक्षता की जरूरत है वह निजी निवेश से ही हासिल हो सकती है.’’ कांग्रेस के राज्यसभा सांसद तन्खा कहते हैं, टेक्नोलॉजी क्या होगी, सिस्टम क्या होगा, सिक्योरिटी कैसे सुनिश्चित की जाएगी—ये बातें विशेषज्ञ तय करेंगे. इसमें सौ फीसद प्राइवेट सेक्टर को शामिल किया जा सकता है. यहां कोई सरकारी गोपनीयता जैसी चीज नहीं है. आपको सॉफ्टवेयर और कनेक्टिविटी चाहिए, ऑपरेटर तो सरकारी कर्मचारी ही होगा.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डी.के. गर्ग कहते हैं, ”निजी क्षेत्र अगर आधुनिक तकनीक के साथ वर्चुअल सुनवाई समेत अन्य व्यवस्थाओं मं’ उतरता है तो निश्चित तौर पर स्थितियां सुधरेंगी लेकिन इसका आर्थिक बोझ मुकदमेदारों पर ही पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट रूम के बाहर मुकदमों का नंबर डिस्प्ले करने वाले बोर्ड को सही स्थिति में आने में तीस साल लग गए. शुरुआत में तो कोर्ट में केस नंबर 13 चलता था तो डिस्प्ले बोर्ड में 4 दिखता था. अब जाकर यह व्यवस्था सुधर पाई है. इसी तरह वर्चुअल कोर्ट को भी पटरी पर आने में कम से कम दस साल लगेंगे.’’
समिति के सामने न्याय विभाग का भी कहना था कि देश के हर हाइकोर्ट और हर राज्य के एक जिले में पायलट प्रोजेक्ट के तहत ई-सेवा केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं जो वकीलों और वादियों की ई-फाइलिंग में मदद कर रहे हैं. समिति ने ई-सेवा केंद्रों की तारीफ करते हुए
कहा कि इन्हें देश के हर अदालत परिसर में जल्दी से जल्दी लगाया जाना चाहिए. जिन लोगों के पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा नहीं है, समिति ने उनके घर तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग उपकरण ले जाने को प्राइवेट सेक्टर की मदद लेने की सिफारिश की है.
जानकार बताते हैं कि ई-कोर्ट के तीसरे चरण में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी ज्यादा होने जा रही है. कंपनियां लीगल सॉफ्टवेयर विकसित करेंगी, जिसका अदालतें अपने हिसाब से इस्तेमाल करेंगी.
सुप्रीम कोर्ट ने 6 अप्रैल 2020 को अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामलों की सुनवाई का रास्ता साफ किया था. भारतीय न्यायपालिका के लिहाज से यह ऐतिहासिक पहल थी. तन्खा मानते हैं कि यह रिपोर्ट अमल में आ जाने पर भारत में अदालत का नक्शा बदल जाएगा. यह नई पीढ़ी की अदालतें होंगी. वैसे भी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालत कोई स्थान नहीं, यह एक सेवा है.
संसदीय समिति की सिफारिशें
तकनीकी व्यवधानों को दूर करने के लिए प्राइवेट सेक्टर को इस काम में जोडऩे की संभावना तलाशी जा सकती है. समिति ने सेंट्रलाइज्ड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्टर के प्रस्ताव की सराहना की है
दूरदराज बैठे वादियों और वकीलों की सहूलियत के लिए न्यायपालिका मोबाइल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे समाधान खुद भी अपना सकती है
न्याय विभाग ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के दूसरे चरण में देश के सभी कोर्ट परिसरों में वाइड एरिया नेटवर्क कनेक्टिविटी और बेहतर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा देने के प्रयास तेज करे
लगातार बिजली सप्लाइ और पावर कट की समस्या से निबटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल कोर्ट परिसरों में किया जाए
गवाहियों की विश्वसनीयता बढ़ाने और कोर्ट फाइलों को डिजिटल तरीके से सुरक्षित करने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल किया जाए (इस तकनीक से मूल फाइल में छेड़छाड़ नहीं हो सकती)
बार काउंसिल तीन और पांच साल के लॉ कोर्स में कंप्यूटर कोर्स को विषय के रूप में रख सकता है ताकि भावी वकील ऑनलाइन सिस्टम सीख सकें. बार काउंसिल राज्यों के बार एसोसिएशनों को वकीलों के लिए क्रैश कोर्स शुरू करने की सलाह दे सकते हैं
सरकार लीगल टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन दे ताकि जस्टिस डिलिवरी सिस्टम से सभी पक्षों को किफायती तरीके से जोड़ा जा सके
कुछ खास श्रेणी के मामले वर्चुअल कोर्ट को ट्रांसफर कर लंबित केसों का बोझ हल्का किया जा सकता है. न्यायपालिका को यह तय करना होगा कि कौन से केस वर्चुअल सुनवाई के माकूल हैं
वर्चुअल कोर्ट का सिस्टम महामारी के समय के बाद भी कुछ खास श्रेणी के मामलों और अपील में जारी रखा जाए
टीडीसैट, आइपीएबी, एनसीएलएटी जैसे अपीलीय ट्रिब्यूनलों को स्थायी रूप से वर्चुअल कोर्ट बनाया जा सकता है जहां पार्टी और वकीलों की मौजूदगी अनिवार्य नहीं है
छोटे मोटे अपराध, ट्रैफिक चालान, मोटर एक्सीडेंट क्लेम केस जैसे मामले वर्चुअल कोर्ट में सुनने चाहिए. जटिल मामलों में हाइब्रिड कोर्ट यानी फिजिकल और वर्चुअल दोनों के मिले रूप को अपनाना चाहिए
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