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इसलिए बैकफुट पर शिवराज सरकार: पहले OBC आरक्षण में फंसी, फिर कांग्रेस के दांव में उलझी; विवाद बढ़ा तो मजबूरी में टालने पड़ रहे पंचायत चुनाव Digital Education Portal

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पंचायत चुनाव पर शिवराज सरकार बैकफुट पर आ गई है। इसकी शुरुआत एक माह पहले हो गई थी। जब सरकार ने कमलनाथ सरकार में हुए परिसीमन को रद्द करने और नए रोटेशन के बिना 2014 के आरक्षण से चुनाव कराने का अध्यादेश जारी किया था। कांग्रेस इसे कोर्ट में चुनौती देगी। सरकार को पता था कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। नतीजा, पंचायत चुनाव टालने का निर्णय लेना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित करने का आदेश दिया था। तब सरकार को फटकार भी लगाई थी। कोर्ट ने कहा था- आग से मत खेलिए..। कानून के दायरे में रहकर चुनाव करवाइए। सरकार और बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस पर आरोप लगा दिया था। इसके बाद मामला न्यायालयीन और सरकारी होने के साथ ही राजनीतिक हो गया था। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा पर हमला भी किया था। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के खिलाफ है।

राज्य निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद सरकार ने कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया। बीजेपी की तरफ से कहा जाने लगा कि कांग्रेस नहीं चाहती है कि ओबीसी को आरक्षण मिले। कांग्रेस की वजह से ही ओबीसी का हक मारा गया है। इसके बाद कांग्रेस ने कहा कि हमने रोटेशन प्रणाली पर सवाल उठाया था। ओबीसी आरक्षण के पक्ष में राज्य सरकार अपना पक्ष सही से नहीं रख पाई है।

राज्य निर्वाचन आयोग ने बीते दिनों तीन चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया था। पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन भी हो गए थे। इसी बीच, ओबीसी आरक्षण में रोटेशन प्रणाली को लेकर पेंच फंस गया था। कई लोगों ने कोर्ट में याचिका लगाकर चुनाव रद्द करने की मांग की थी। कांग्रेस नेता विवेक तन्खा कोर्ट में पैरवी कर रहे थे। एमपी हाईकोर्ट ने चुनाव पर रोक लगाने से इंकार किए जाने बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

पहले हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट ने अर्जेंट हियरिंग से कर दिया था इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने फिर से याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने को कहा था। हाईकोर्ट ने अर्जेंट हियरिंग (सुनवाई) से इंकार कर दिया था। इसके बाद अगले दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य कर दिया। अगले दिन इन सीटों पर चुनाव स्थगित करने का फैसला किया। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी अर्जेंट हियरिंग नहीं होने से सरकार को झटका लगा।

विधानसभा में भी बवाल
विधानसभा का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर से शुरू हुआ। सत्र के दौरान ओबीसी आरक्षण को लेकर हंगामा हुआ। विपक्ष लगातार सरकार से जवाब मांग रही थी। कांग्रेस विधायकों ने कहा कि पंचायत चुनाव को लेकर सरकार कुछ नहीं कर रही है। एक तरफ चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। दूसरी ओर कोर्ट में जाने की बात कही जा रही है। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने कहा कि हम चाहते हैं चुनाव को तत्काल रोका जाए।

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आखिर विधानसभा में करना पड़ा संकल्प पारित
मामला बढ़ता देख शिवराज सिंह चौहान ने सदन में सफाई दी। सदन में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस की वजह से ओबीसी को आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। कांग्रेस सिर्फ दिखावा कर रही है। हमारी सरकार लगातार ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए प्रयास कर रही है। हम चाहते हैं कि बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव ना कराए जाएं। सभी सदस्यों ने हाथ उठाकर इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव को लेकर आक्रोश है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सदन सर्वसम्मति से संकल्प पारित करके यह ऐतिहासिक फैसला करे कि पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही हों। इस पर नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने कहा कि हम तो यही कह रहे थे कि सदन से संकल्प पारित किया जाए।

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शिवराज को देना पड़ा जवाब
अगले दिन फिर इसे लेकर सदन में बवाल हुआ तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ कर दिया कि अब राज्य में पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना नहीं होंगे। वहीं, कांग्रेस ने भी कहा कि ओबीसी को आरक्षण दिलाने के लिए कोर्ट में हम भी सरकार के साथ लड़ाई लड़ेंगे। तीन जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर सुनवाई है।

अपनों के निशाने पर शिवराज सरकार
ओबीसी आरक्षण विवाद को लेकर शिवराज असहज हो गई थी। उमा भारती ने इसे लेकर सवाल उठाया था। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी शिवराज पर इशारों-इशारों में निशाना साधा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती ने सोशल मीडिया पर लिखा था- बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव नहीं होना चाहिए। इसे लेकर उन्होंने शिवराज से बात की थी। इसके बाद केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि पिछड़ों को आग में ना झोंकें तो अच्छा होगा। साथ ही, जरूरी कदम नहीं उठाए जाने को लेकर भी सवाल उठाए गए थे। ऐसे में शिवराज सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी।

प्रदेश में सबसे ज्यादा ओबीसी की आबादी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद इसी वर्ग से आते हैं। आरक्षण के मुद्दे पर शिवराज सरकार किसी भी कीमत पर इस वर्ग को नाराज नहीं करना चाहता है। अंत में सरकार ने कैबिनेट की बैठक में पंचायत चुनाव को टालने का फैसला लिया है। इतना ही नहीं, सरकार ने कैबिनेट के फैसले की फाइल एक घंटे बाद ही राजभवन भेज दी थी। उम्मीद है कि रविवार देर शाम इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी।

पंचायतराज संशोधन विधेयक भी विधानसभा में पारित नहीं कराया
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने पंचायतराज संशोधन विधेयक पारित नहीं कराया गया। सरकार ने इस विधेयक को सत्र शुरू होने के पहले दिन पटल पर रखने की जानकारी कार्यसूची में दी गई थी। इसे पारित नहीं कराया। इससे साफ था कि सरकार चुनाव को अब टालना चाहती है। सरकार ने मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 लागू किया था। जिसके तहत पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच सरकार ने ऐसी पंचायतों के परिसीमन को निरस्त कर दिया था, जहां बीते एक साल से चुनाव नहीं हुए हैं।

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