उन्होने कहा कि सच तो यह है कि ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था भी भाजपा सरकार की भटकाऊ नीति का ही एक अंग है। गांवों में रहने वाले छात्र-छात्राओं को बिजली की किल्लत रहती है, नेटवर्क काम नहीं करता है, गरीब घरों में लैपटाप, स्मार्टफोन नहीं है।
लाॅकडाउन में रोटी-रोजगार की भी परेशानी बढ़ी है। जिसके दो या तीन बच्चे पढ़ने वाले हैं वे हरेक के लिए कहां से फोन, लैपटाप की व्यवस्था कर पाएंगे। भाजपा दिखावे के काम करने में माहिर है, सच्चाई से वह दूर भागती है।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा जगत में इन दिनों अभिभावकों के सामने एक और विकट समस्या स्कूल-काॅलेजों की फीस भरने की है। आनलाइन शिक्षण में 80 प्रतिशत प्रयास तो अभिभावकों को करने पड़ते हैं। इस हिसाब से स्कूली फीस 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
किन्तु स्कूल-काॅलेज अभी पूरी फीस वसूलना चाहते है। ज्यादातर शिक्षा संस्थाओं के प्रबंधक व्यवसायिक संस्थान के रूप में काम कर रहे हैं। वैसे भी आनलाइन पढ़ाई की फीस कैम्पस पढ़ाई की फीस के बराबर नहीं हो सकती है। भाजपा सरकार को इस सम्बंध में गाइडलाइन जारी करना चाहिए।
उन्होने कहा कि कैसी विसंगति है कि ऑनलाइन के फैशन में बच्चों के स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं की जा रही है कि फोन, लैपटाप और टीवी के सामने घंटों बैठने की आदत से बच्चों की आंखों की रोशनी पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा।
अब तो कक्षा एक तक से इसकी आदत डालने का खेल चल रहा है। बच्चों के स्वास्थ्य एवं भविष्य के साथ ऐसी कुनीति भाजपा सरकार ही चला सकती है क्योंकि उसे बड़े व्यवसायियों एवं देशी-विदेशी निर्माता कम्पनियों को फायदे में रखना है। पूंजी घरानों का हित ही उसके लिए सर्वोपरि है।
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