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Agriculture Reforms Bill 2020: किसी भी कानून का हिस्सा नहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य
Farmer's scheme

Agriculture Reforms Bill 2020: किसी भी कानून का हिस्सा नहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य

नई दिल्‍ली, जेएनएन। संसद से पारित कृषि विधेयकों का कुछ राज्यों में इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि उन्हें डर है कि एमएसपी प्रणाली खत्म हो जाएगी। दूसरी तरफ, सरकार ने भरोसा दिया है कि एमएसपी प्रणाली खत्म नहीं होने वाली। विरोध करने वाले इस प्रणाली को कानूनी रूप देने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, सच्चाई यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी अब तक किसी कानून का हिस्सा रहा ही नहीं है।

विधेयक में प्रावधान नही

कृषि उत्पाद व्यापार व वाणिज्य विधेयक-2020 में एमएसपी का प्रावधान नहीं है। विरोध करने वाले किसान व राजनीतिक दल एमएसपी को विधेयक में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।
विधेयक में प्रावधान नहीं

केंद्र सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों पर फिलहाल 23 प्रकार की जिंसों के लिए एमएसपी तय करती है। इनमें सात अनाज, पांच दलहन, सात तिलहन व चार नकदी फसलें शामिल हैं। बता दें कि सीएसीपी संसद से मान्यता प्राप्त वैधानिक निकाय नहीं है। वर्ष 1965 में हरित क्रांति के समय किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए एमएसपी की घोषणा की गई थी। हालांकि, वर्ष 1966-67 में गेहूं की खरीद के साथ यह पहली बार प्रभाव में आया।

सीएसीपी ने दिया था कानून का सुझाव : सीएसीपी ने वर्ष 2018-19 में खरीफ सीजन के दौरान मूल्य नीति रिपोर्ट में कानून बनाने का सुझाव दिया था। तब यह महसूस किया गया था कि किसानों के बीच उनकी उपज की उचित कीमत दिलाने के लिए विश्वास पैदा करना होगा। हालिया विरोध उसी विश्वास के डगमगाने से जुड़ा है।

लोगों को डर है कि नए कानून के आने के बाद मंडियां समाप्त हो जाएंगी और फसल खरीद में बड़ी कंपनियों का दबदबा बढ़ जाएगा। हालांकि, सरकार साफ कर चुकी है कि मंडियां बनी रहेंगी।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि तीनों विधेयकों का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। एमएसपी न तो पहले किसी कानून का हिस्सा था और न ही अब किसी कानून का हिस्सा है।

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