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MP पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण पर AtoZ: OBC का आरक्षण पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए 4 सीटें मिल सकती हैं Digital Education Portal

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मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद अब OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षण प्रक्रिया नए सिरे से होगी। राज्य निर्वाचन आयोग ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति के साथ राज्य शासन को चिट्‌ठी भेज दी है। दरअसल, वर्तमान में कुल सीटों में से अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और ओबीसी के लिए कुल मिलाकर 50% से ज्यादा सीटें रिजर्व कर दी गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने आदेश का उल्लंघन माना है।

राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव बीएस जामोद ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए बताया कि ओबीसी के लिए आरक्षण खत्म नहीं हुआ है। आरक्षण अधिकतम 50% सीटों पर दिया जा सकता है। एससी-एसटी के लिए रिजर्व सीटों को कम या ज्यादा नहीं किया जा सकता, लेकिन ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिला पंचायत की 52 सीटों में से 22 एससी-एसटी के लिए रिजर्व हैं। इस हिसाब से ओबीसी के लिए 4 सीटें रिजर्व होंगी। इस प्रक्रिया को 7 दिन में पूरा कर आयोग को जानकारी भेजने के लिए राज्य सरकार को पत्र भेजा गया है।

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वर्तमान में प्रदेश की पंचायतों में औसतन 60% सीटें रिजर्व

आयोग के सूत्रों ने बताया कि फिलहाल यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि पंचायतों में रिजर्व सीटों का प्रतिशत कितना है? दरअसल, पंचायत में आरक्षण उस क्षेत्र की आबादी के हिसाब से होता है। बतौर उदाहरण- झाबुआ में ओबीसी की आबादी बहुत कम है, इसलिए यहां की पंचायतों में इस वर्ग के लिए बहुत कम सीटें रिजर्व होंगी। यानी यहां सामान्य सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। अनुमान के मुताबिक प्रदेश की पंचायतों में औसतन 15% सीटें एससी, 20% सीटें एसटी और 25% सीटें ओबीसी के लिए रिजर्व हैं। इस तरह 60% सीटें रिजर्व हैं, जो 50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

आयोग के सामने क्या है संकट

निर्वाचन आयोग के सामने संकट यह है कि भले ही ओबीसी सीटों पर निर्वाचन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, लेकिन सभी सीटों का रिजल्ट एक साथ घोषित कराना है। यह निर्देश आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं। अब सरकार नए सिरे से आरक्षण करती है, तो इसमें वक्त लगेगा। ऐसे में जिन सीटों में बदलाव होगा, वहां मतदान समय पर हो पाना संभव नहीं लगता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि सरकार ओबीसी सीटों के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित कर अधिसूचना जारी करे। संभवत: आज-कल में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अधिसूचना जारी कर देगा।

सीटों का आरक्षण महाराष्ट्र में राज्य निर्वाचन आयोग व MP में सरकार करती है

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव की याचिका के साथ ही मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव की याचिका को शामिल कर लिया था। कोर्ट ने महाराष्ट्र के मामले में ओबीसी आरक्षण रद्द करने का आदेश राज्य निर्वाचन आयोग को दिया था। यही वजह है कि मध्य प्रदेश के मामले में कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी किए। मप्र में आरक्षण राज्य सरकार करती है।

सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र स्थानीय चुनाव के लिए यह था निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में 27% OBC के लिए आरक्षित सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने अपने 6 दिसंबर के आदेश में तब्दीली से इनकार कर दिया। कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अपनी पिछली अधिसूचना में बदलाव करते हुए हफ्ते भर में नई अधिसूचना जारी करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिसूचना में पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया। इसके बाद बाकी बची 73% सीटें सामान्य श्रेणी के लिए रखे जाने की नई अधिसूचना एक हफ्ते में जारी करने का आदेश राज्य निर्वाचन आयोग को दिया है।

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आरक्षण में करना होगा ट्रिपल टेस्ट का पालन

सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाए। OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करे। अदालत ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा, तो चुनाव रद्द किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को जनवरी को करेगा।

जानिए क्या है ट्रिपल टेस्ट

1- राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना।
2- आयोग की सिफारिशों के मुताबिक स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो।
3- किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

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