अनुशासन (डिसिप्लिन) का पालन तभी संभव है, जब मनुष्य का उस काम में अनुराग हो जिसमें वह लगा है। इसके बिना अनुशासन अनुकरण-मात्र होगा।
– महात्मा गांधी
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डिसिप्लिन क्या है
डिसिप्लिन का अर्थ है, वह करना जिसे करने की आवश्यकता है। भले ही आप इसे नहीं करना चाहते हों। अगर हम खुद को डिसिप्लिन नहीं करेंगे तो दुनिया हमारे लिए यह करेगी। स्कूल डिसिप्लिन का अर्थ है एक कोड ऑफ कंडक्ट, जिसे टीचर्स या स्कूल द्वारा स्टूडेंट्स पर लागू किया जाता है, जब स्कूल का सिस्टम और स्टडी पैटर्न बाधित होता है।
स्कूल में डिसिप्लिन क्यों
क्लास में डिसिप्लिन स्टूडेंट्स को पढ़ाई पर फोकस करने में मदद करता है। समय के साथ, यह उन्हें अन्य तरीकों से फोकस करना सिखाता है। एक अनुशासित छात्र अपने लक्ष्यों पर फोकस करने और अपने काम को फर्स्ट प्रायोरिटी के रूप में रखने में सक्षम होता है। इसके लाइफ-लॉन्ग बेनिफिट होते हैं। लेकिन सोशल मीडिया और इंटरनेट एज में टीचर्स डिसिप्लिन लागू करने में प्रॉब्लम फेस कर रहे हैं!
स्कूल डिसिप्लिन के मायने
आज जहां एजुकेशन का गोल स्टूडेंट्स में ‘गुड सिटीजनशिप’ और सोशल बिहेवियर बिल्ड करना है, वहीं स्कूल डिसिप्लिन का अर्थ इंटरनल और एक्सटर्नल अनुशासन है जिससे फिजिकल, मेन्टल, सोशल और मोरल वैल्यूज का विकास होना चाहिए। मतलब सेल्फ-कंट्रोल और सेल्फ-रेगुलेशन।
डिसिप्लिन का इतिहास
मॉडर्न स्कूलिंग उन्नीसवीं सदी में लागू हुआ टीचर्स का एक-तरफा डिसिप्लिन स्टूडेंट्स को पूरी तरह दबा कर रखता था। स्टूडेंट्स एक तरह से डरे हुए और आतंकित रहते थे कि कब मार पड़ जाए! मशहूर रॉक बैंड ‘पिंक फ्लॉयड’ के रॉजर वॉटर्स की रचना ‘अनादर ब्रिक इन द वॉल’ (वी डोंट नीड नो एजुकेशन) ने हलचल मचा दी थी, जब शिक्षा में बेवजह डिसिप्लिन से पैदा क्रूरता पर उनके गीत ने रोशनी डाली। धीरे-धीरे स्कूल और कॉलेज अपने डिसिप्लिन में थोड़ी फ्लेक्सिबिलिटी लाने लगे।
मुझे याद है कि स्कूल में हमें बहुत मार पड़ती थी, और कुछ टीचर्स हाथ में छड़ी लेकर चलते थे। उस समय के लिए ये आम बात होती थी। लेकिन समाज बदल गया और फिजिकल पनिशमेंट अब लगभग जीरो हो चुका है।
स्कूल डिसिप्लिन के मॉडर्न मायने
डिसिप्लिन अभी भी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, अच्छे स्कूलों में अब सजा नहीं दी जाती, बल्कि स्टूडेंट से बात की जाती है और उसे समझने की कोशिश की जाती है। छात्रों को शक्तिहीन और लज्जित महसूस कराने के बजाय उन्हें आत्म-करुणा और व्यक्तिगत-जिम्मेदारी का अहसास कराया जाता है। क्या किया जाना चाहिए से आगे बढ़कर इसे क्यों करना चाहिए है या हम इसे कैसे करने जा रहे हैं का भाव बढ़ गया है।
मॉडर्न डिसिप्लिन की प्रमुख चिंता बच्चे की मेन्टल स्टेट है, न कि आदेशों का पालन करवाना। यह मानता है कि बच्चे तेजी से विकास के दौर में हैं। मॉडर्न डिसिप्लिन यह मानता है कि व्यवहार की जिम्मेदारी धीरे-धीरे स्वयं विद्यार्थियों पर ट्रांसफर हो जाती है। मॉडर्न डिसिप्लिन का कार्य एक प्रकार के आचरण को सुरक्षित करना है, इससे बच्चे में बेस्ट कैरेक्टर और पर्सनेलिटी का विकास होगा।
स्कूल्स के लिए 8 पावरफुल टिप्स
1) क्लासरूम के अंदर सोशल मीडिया उपयोग पर बैन रखें।
2) स्टूडेंट्स को दोस्त बनाएं, लेकिन सीमा कभी पार न करें।
3) दिल जीतने से डिसिप्लिन आसानी से लागू किया जा सकता है।
4) स्टूडेंट्स को अपराध-बोध के बजाय जीवित उदाहरण देकर प्रेरित करें।
5) बच्चों पर लेबल न चिपकाएं कि ‘रोहित तो बदमाश है’, ‘प्रीति तो नालायक है’।
6) स्टूडेंट्स को सवाल पूछने के लिए कभी न डांटे, और यदि उत्तर न आता हो तो स्वीकार करें।
7) स्कूल मैनेजमेंट पनिशमेंट के तरीके और ग्रेड पहले से लिखित में तय रखे और टीचर्स को समय समय पर ओरिएंट कराते रहे।
8) स्मार्टक्लास, प्रोजेक्टर, स्मार्ट-बोर्ड ये सिर्फ टूल्स हैं, एजुकेशन नहीं। टीचर्स ही सबसे स्ट्रांग फोर्स हैं, ये समझें।
इन तरीकों के बेनिफिट
आज के स्टूडेंट्स लगातार इंटरनेट पर आसानी से हर तरह की इनफार्मेशन, वीडियो, और एजुकेशन टूल्स एक्सेस कर लेते हैं। कई मायनों में तो उन्हें टीचर्स से अधिक भी कोई फैक्ट पता हो सकता है। ये कोई शर्म की बात नहीं है, न ही कोई कम्पटीशन की बात है। ये बस आज का सच है, इसे स्वीकारें। बताए गए सात टिप्स का यूज करके आप एक फ्रेंडली तरीके से नए रिलेशन बना सकते हैं।
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