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Cm Rise Exam Preparation पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियां
cm riseeducationEnvironment (पर्यावरण)notes

Cm Rise Exam Preparation पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियां

Cm Rise Exam Preparation नमस्कार साथियों ! इस लेख में डिजिटल एजुकेशन पोर्टल आपके साथ  Teaching Method of Environment पर्यावरण अध्ययन की प्रमुख विधियां (Environment Notes in Hindi) शेयर करने जा रहे हैं | जोकि सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा जैसे- Cm Rise Teacher Selection Exam, REET,UPTET,MPTET Gread-3 ,CTET आदि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है| क्योंकि इन सभी परीक्षाओं में पर्यावरण शिक्षण शास्त्र से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं, उन प्रश्नों के सही उत्तर देने के लिए आवश्यक है कि आपको उसका संपूर्ण ज्ञान हो|

जैसा कि आप सभी जानते हैं सीएम राईज शिक्षक चयन परीक्षा 28 नवंबर 2021 को संपूर्ण मध्यप्रदेश के विभिन्न जिला स्तर के परीक्षा केंद्रों पर आयोजित होने जा रही है | सीएम राइज शिक्षक चयन परीक्षा में आवेदन करने वाले शिक्षकों के लिए पर्यावरण अध्ययन एवं उसकी विभिन्न शिक्षण विधियों की जानकारी होना अनिवार्य| तो चलिए आज इस लेख में हम आपको बताते हैं पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियों के बारे में

पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण विधियां (Teaching Method of Environment)

विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों का सहारा लेकर पर्यावरण अध्ययन को रोचक, प्रभावशाली, बोधगम्य बनाया जाता है| जैसे-किसी प्रकरण को पढ़ाते समय, कहानी ,कविता, पहेली ,चित्र ,चार्ट ,वीडियो, फिल्म या किसी प्रकरण के अनुसार विद्यार्थियों किसी विशेष स्थान पर ले जाया जाता है| ताकि अधिक से अधिक ज्ञान इंद्रियों का उपयोग करने से उसका ज्ञान स्थाई हो जाए

शिक्षण विधियां दो प्रकार की होती हैं-

1.अध्यापक केंद्रित

  • व्याख्यान विधि
  • प्रदर्शन विधि

2. छात्र केंद्रित

  • खेल विधि
  • प्रश्नोत्तर विधि
  • शैक्षिक भ्रमण विधि
  • विश्लेषण विधि
  • संश्लेषण विधि
  • आगमन विधि

पर्यावरण अध्ययन के कुछ मुख्य शिक्षण विधियां इस प्रकार हैं-

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1.भ्रमण विधि (Field trip)

2.प्रदत्त कार्य (Assignment)

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3.प्रयोग प्रदर्शन विधि (Demonstration method)

4.समस्या समाधान विधि (problem solving method)

5.प्रयोजना विधि (project method)

6.अन्वेषण तथा खोज विधि (Heuristic method)

1.भ्रमण विधि

भ्रमण विधि के माध्यम से शिक्षक विद्यार्थियों को प्रकृति के सौंदर्य का अलौकिक रूप दिखाते हैं|

क्षेत्र भ्रमण विधि के प्रतिपादक” प्रोफेसर  रैन”माने जाते हैं। क्षेत्र भ्रमण लोगों के एक समूह को  उनके सामान्य पर्यावरण से दूर की यात्रा पर ले जाना है। जैसे कि- चिड़ियाघर, बाग, उद्यान, अजायबघर के भ्रमण विद्यालय जीवन का अंग है।   इन ब्राह्मणों को सफल बनाने का मंत्र यह है कि ऐसी विभिन्न क्रियाओं की योजना बनाई जाए जो कि सुखद एवं शैक्षणिक दोनों हो। यह भी महत्वपूर्ण है कि शैक्षिक भाग पर अधिक जोर ना दिया जाए।

भ्रमण विधि से पहले आपको कुछ तैयारियां करना आवश्यक होती है जो निम्नानुसार है –

  • भ्रमण की योजना
  • भ्रमण स्थल का चुनाव
  • भ्रमण की तैयारी
  • आवश्यक सामग्री
  • पर्यटन का मूल्यांकन

उदाहरण- ” पौधे के अध्ययन” के लिए क्षेत्र भ्रमण कराना।

उद्देश्य-  इसका उद्देश्य है कि बच्चे पौधों के नाम, बाहरी लक्षणों से भेद कराना सीखेंगे, उनके रूप व आकार एवं पदों की डिजाइन में अंतर देख पाएंगे।  प्रत्येक पौधे की उपयोगिता के बारे में जाने।

सफल क्षेत्र भ्रमण के चरण

1  भ्रमण हेतु उद्देश्य निर्धारित करना

एक शिक्षक होने के नाते सबसे पहले आपको भ्रमण हेतु  शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करना होगा।

2 कार्यक्रम की योजना बनाना

भ्रमण पर जाने से पहले कार्यक्रम की पूर्ण योजना बनानी होती है।  जैसे- सब कुछ देखने में कितना समय लगेगा, किस रास्ते से जाना है। क्रियाएं करवाने के लिए जगह की उपलब्धता, किस प्रकार की क्रियाएं अधिगम को बेहतर करने के लिए ठीक रहेगी।  याद रहे आप एक ही बार में भ्रमण मे बहुत अधिक सीखने के प्रयास ना करें।

3 बच्चों को संक्षेप में बताना

भ्रमण पर जाने से पहले ही बच्चों को यह बताना महत्वपूर्ण है कि वे कहां जा रहे हैं,वे  क्या देखेंगे, भ्रमण के उद्देश्य क्या है, तथा योजना क्या है भ्रमण के दौरान “क्या करना है क्या नहीं करना है।”

4 भ्रमण के बाद

भ्रमण के समाप्त होने के बाद बच्चों को एक स्थान पर एकत्र करके एक संक्षिप्त मौखिक वार्तालाप की जा सकती है।  या विद्यालय में आकर, ऐसे सत्र में चर्चाएं प्रश्न उत्तर, क्विज भ्रमण के बारे में लिखना या चित्र बनाना आदि।

5  कार्य का मूल्यांकन करना

भ्रमण द्वारा जिन उद्देश्यों की प्राप्ति करना चाहते थे।  वे पूरे हुए या नहीं

  • यदि उद्देश्य प्राप्त नहीं हुए तो उसके क्या कारण थे?
  • महाराणा आपके  वश में थे या बाहर?
  • भ्रमण के समय समूह ने कुछ ऐसा व्यवहार किया जिसकी आशा नहीं थी?
  • क्या भ्रमण के समय परिस्थितियां सही थी?
  • क्या समय पर्याप्त था? क्या स्टाफ पर्याप्त था।
  • भविष्य में इसे बेहतर बनाने के लिए क्या अलग किया जा सकता है?

कार्यपत्रक(Work Sheet)

कार्यपत्रक को किसी भी प्रकार केभ्रमण हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है।  जैसे- पार्क, चिड़ियाघर, ऐतिहासिक स्थल इत्यादि के भ्रमण के लिए।

2.प्रदत्त कार्य

जब एक विद्यार्थी विद्यार्थियों के समूह अथवा संपूर्ण कक्षा को कुछ विशेष शिक्षक उत्तरदायित्व दिया जाता है , तब इस प्रकार के कार्य को प्रदत्त कार्य कहते हैं

3.प्रयोग प्रदर्शन विधि

इस विधि में शिक्षक विद्यार्थियों के समक्ष प्रयोग प्रदर्शन कर विषय वस्तु को स्पष्ट करता है, जिसमें उनकी सहभागिता भी ली जाती है| इसे बहु संवेदी शिक्षण विधि भी कहा जाता है

इस विधि में विद्यार्थी देखता, सुनता और करके सीखता है ज्ञान स्थाई और स्पष्ट हो जाता है|

4.समस्या समाधान विधि

इस विधि में मानसिक क्रियाओं पर बल दिया जाता है | अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के सम्मुख समस्या प्रस्तुत की जाती है जिस की समस्या विद्यार्थी अपने सीखे हुए नियम सिद्धांत एवं प्रत्यय यों की सहायता से करते हैं कठिनाई के स्तर का ध्यान रखकर समस्याओं का चयन किया जाता है

इसके सोपान हैं-

  • समस्या की उत्पत्ति  एवं चयन करना।
  • समस्या का निवारण करना।
  • वैकल्पिक समाधानो  को खोजना, उनकी जांच करना।
  • विचार-विमर्श करके उपयुक्त विकल्प को खोजना।
  • रणनीति पर कार्य करना एवं मूल्यांकन करना।

समस्या समाधान विधि के लाभ

  • इस विधि के माध्यम से विषय में रुचि उत्पन्न होती है।
  • अवलोकन क्षमता का विकास होता है।
  • तार्किक क्षमता का भी विकास होता है एवं चिंतन शक्ति का विकास होता है।
  • इस विधि के माध्यम से भावी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है।
  • विद्यार्थी स्वयं सक्रिय रहते हैं, इसीलिए अर्जित ज्ञान स्थाई हो जाता है।
  • स्वाध्याय की आदत का विकास होता है।
  •  यह विधि पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को समझने के लिए अंतर्दृष्टि के विकास में सहायक होती है।
  • बच्चों में बहुमुखी चंदन को बढ़ावा देने हेतु उपयोगी।
  • समूह प्रक्रियाओं में बच्चों को भागीदारी के योग्य बनाने हेतु

5.परियोजना विधि (Project method)

किलपैट्रिक(प्रतिपादक) के अनुसार ” परियोजना एक पूरे दिल से की जानेवाली उद्देश्य पूर्ण क्रिया है, जो कि सामाजिक पर्यावरण में संपादित की जाती है।”

किलपैट्रिक के अनुसार” प्रयोजन वह उद्देश्य पूर्ण कार्य है , जिसे लगन के साथ सामाजिक वातावरण में संपन्न किया जाता है” जो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं|

परियोजना विधि के चरण

परियोजना विधि के तीन प्रमुख चरण होते हैं जो कि इस प्रकार है।

(1 ) क्रिया – पूर्व अवस्था

  • परियोजना कार्य की समस्या तथा उसके उद्देश्य कथन ।
  • चुनी गई परियोजना के विभिन्न पक्षों को निर्धारित करना तथा नियोजित करना जैसे कि संसाधन, निश्चित कार्य, जोखिम\ चुनौतियां, प्रलेखन आदि।
  • परियोजना टीम को दीक्षित करना- मेलजोल बढ़ाना, भूमिका एवं कार्य बांटना।
(2) क्रिया  अवस्था
  • परियोजना के स्त्रोत एवं उपकरणों की पहचान।
  • योजना बनाना तथा उस पर कार्य करना।
  • परी योजना के लिए अलग-अलग संभावित क्रियाकलाप एवं कार्यों की सूची बनाना।
  •  कार्यक्षेत्र, लक्ष्य समूह की पहचान करना, उपकरणों को संचालित  करना तथा तथ्य एकत्रित करने के लिए निर्देश देना।
क्रियोतरअवस्था
  • तथ्यों को एकत्रित करने ,  विश्लेषण करने तथा समझने का कार्य।
  • समस्या के समाधान की ओर जाना।
  • अनुभव पर विचार करना अनुभवों को प्रलेखित करना।

शिक्षक की भूमिका  एक संसाधक में परिवर्तित हो जाती है।  शिक्षक द्वारा बच्चों को चुनाव करने, योजना बनाने, लागू करने तथा मूल्यांकन करने में दिशा प्रदान करने की आवश्यकता पड़ सकती है।  ताकि परियोजना एक उद्देश्य पूर्ण एवं अर्थ पूर्ण अधिगम अनुभव बन पाए।

उदाहरण- सफाई अभियान

  • बच्चे विद्यालय को साफ करने का अभियान चला सकते हैं।
  • विद्यार्थियों के समूह 1 सप्ताह के लिए प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों का निरीक्षण करेंगे।  अवलोकन करेंगे तथा जिस प्रकार का कचरा उन्हें मिला कितना और कहां मिला उसकी सूची बनाएंगे।
  • बच्चों से खाद का एक गड्ढा बनवाएं।

  परियोजना विधि की उपयोगिताए

  • अधिगम के नियम जैसे कि अधिगम हेतु तैयारी, इसका प्रभाव तथा प्रोत्साहन का घटक, इस विधि में भली-भांति प्रयोग होते हैं।
  • अनुभव वास्तविक जीवन पर आधारित  होता है। इसीलिए लंबे समय तक बना रहता है।
  • यह कार्य अनुभव, अभिसारी चिंतन आत्मविश्वास तथा आत्म अनुशासन का अवसर प्रदान करती है।

6.अन्वेषण अथवा खोज विधि

इस विधि के जनक एच. ई आर्मस्ट्रांग है|

  • अन्वेषण विधि के जनक एच.ई. आर्मस्ट्रांग माने जाते हैं।
  • “हयूरिस्टिक” एक ग्रीक शब्द है।  इसका अर्थ” मैं खोज करता हूं” होता है।
  • यह शिक्षण की एक ऐसी विधि है जिसमें विद्यार्थी अनुसंधानकर्ता के रूप में कार्य करता है।  विद्यार्थी को अपने निरीक्षण तथा प्रयोग में स्वयं खोजना होता है।
  • अध्यापक विद्यार्थियों को बहुत से क्रियाकलाप बताते हैं।  फिर विद्यार्थी स्वयं प्रयोग करके निष्कर्ष निकालते हैं।

   अन्वेषण विधि के गुण

  • इस विधि का प्रमुख गुण यह है कि इसमें बच्चों में वैज्ञानिक सोच का विकास होता है।
  • बच्चे सदैव क्रियाशील रहते हैं।
  • इस विधि के माध्यम से बच्चों में  प्रेक्षण करने की क्षमता का विकास होता है।
  •  अन्वेषण विधि के द्वारा वे आंकड़े एकत्रित करना सीखते हैं।  आंकड़ों की व्याख्या करना, प्रायोगिक हल तैयार करना और अपेक्षित निष्कर्ष पर पहुंचना सीखते हैं।

अन्वेषण विधि के चरण

1  समस्या की पहचान करना

2  अवलोकन और प्रयोग करना

3  समस्या समाधान

4  मूल्यांकन करना

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