MP में हिंदी में प्रोफेशनल एजुकेशन की मुश्किलें: इंजीनियरिंग के लिए RGPV ने लगाया छात्र संख्या का बंधन, राज्य सरकार भी उलझी; मेडिकल एजुकेशन में भी पेंच Digital Education Portal
मध्यप्रदेश में प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई हिंदी में कराई जाए। इसके लिए सालों से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। हिंदी को प्रोफेशनल स्टडी का माध्यम बनाने के लिए सरकारी सिस्टम से जूझती दिख रही है। अब जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाने की मंजूरी मिल चुकी है। इसके बाद भी इसे अपनाने के लिए स्पष्ट रोडमैप तैयार नहीं है।
राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने तय किया है कि भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज GMC में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर तीन विषय हिंदी में पढ़ाए जाएंगे। लेकिन जहां केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। साथ ही, राज्य में बीजेपी की सत्ता होने से डबल इंजन की सरकार हो, हिंदी के प्रति यह कार्रवाई सवाल खड़े करती है। जिम्मेदार इसे लेकर गंभीर नहीं दिख रहे हैं। यह जानते हुए भी कि मेडिकल एजुकेशन का माध्यम हिंदी कराने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने भी कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी।
इसके बाद भी सरकारी सिस्टम में हिंदी गोल-गोल घूम रही है। स्पष्ट नीति तैयार नहीं हो पा रही है। जिससे पढ़ने वाले छात्र बिना किसी संकोच के आगे आ सकें।
पहले बात करते हैं हिंदी को इंजीनियरिंग का माध्यम बनाने की। केंद्र सरकार इंजीनियरिंग की पढ़ाई क्षेत्रीय भाषाओं में कराने के लिए कोशिश कर रही है। मध्यप्रदेश सरकार भी चाहती है कि विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई करने का अवसर मिले। लेकिन यहां के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय RGPV ने चालाकी से हिंदी को किनारे कर दिया।
आरजीपीवी ने शर्त लागू कर दी कि 50 प्रतिशत छात्र हिंदी में पढ़ने की इच्छा जताते हैं, तो उन्हें हिंदी में पढ़ने की मंजूरी दी जाएगी। कुलपति प्रो. सुनील कुमार की अध्यक्षता में हुई कार्यपरिषद में यह निर्णय ले लिया गया। इस शर्त ने राज्य सरकार को उलझन में डाल दिया है। तकनीकी शिक्षा विभाग ने 50 प्रतिशत को कम कर 25 प्रतिशत करने के लिए विवि को निर्देश दिए हैं। यानी अभी भी हिंदी को पूरी स्वतंत्रता के साथ नहीं अपनाया जा रहा है। यदि किसी क्लास के 25 प्रतिशत छात्र तैयार नहीं हुए, तो कोई भी हिंदी में नहीं पढ़ पाएगा।
किताबों को अनुवाद करने की जिम्मेदारी आरजीपीवी के पास
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद AICTE द्वारा RGPV को भी इंजीनियरिंग की अंग्रेजी की किताबों का हिंदी में ट्रांसलेशन की जिम्मेदारी दी गई। यह काम तो विवि ने शुरू किया, लेकिन इसी आरजीपीवी के अधिकारियों ने चालाकी से सरकार की मंशा को खत्म करने की योजना बना ली। हिंदी में पढ़ाई कराने के लिए अजीब शर्त लागू करा दी।
मप्र में हिंदी को लेकर अनुकूल है माहौल
जानकार कहते हैं कि आरजीपीवी द्वारा ली जाने वाली परीक्षा के प्रश्नपत्र अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा में आ रहा है। पहले वर्ष की किताबें हिंदी में तैयार हैं। मप्र में पढ़ने वाले छात्र हिंदी जानते हैं। मप्र में पढ़ाने वाले हिंदी जानते हैं। आरजीपीवी मप्र के सभी 52 जिलों को कवर करता हैं। इसमें से बड़ा क्षेत्र आदिवासी आबादी का है। जिन्हें अंग्रेजी में पढ़ाई करने में परेशानी होती है। इसके बाद भी हिंदी आरजीपीवी की शर्त को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
मेडिकल एजुकेशन की हिंदी में पढ़ाई में कराने के लिए तकनीकी बाधा
भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में पायलेट प्रोजेक्ट शुरू होगा। इसके लिए तीन एमबीबीएस पहले वर्ष में पढ़ाए जाने वाले तीन विषयों का पाठ्यक्रम हिंदी माध्यम में तैयार कराया जा है। नेशनल मेडिकल कमीशन ( पूर्व में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) इसकी मंजूरी नहीं देता है, तो यह इसकी सफलता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
इसका असर गांधी मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों पर पड़ सकता है। दरअसल, इसकी अपेक्स बॉडी नेशनल मेडिकल कमीशन ने अभी तक हिंदी में पढ़ाई को मंजूरी दी है। जानकार कहते हैं कि जैसे इंजीनियरिंग को एआईसीटीई ने मान्य किया है। वैसे ही, मेडिकल एजुकेशन के लिए भी हिंदी को मान्य कराया जाना चाहिए।
पहले तकनीकी पेंच खत्म कराना जरूरी
अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विवि के पूर्व कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा कहते हैं कि जब हिंदी को राजभाषा बनाया गया था। तब यह कहा गया था कि हिंदी अंग्रेजी के साथ-साथ चलेगी। सरकार के सभी विभागों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कार्य करने थे, लेकिन हिंदी में काम नहीं किए गए। इससे यह पिछड़ गई। मेरे रहते ही मेडिकल एजुकेशन की पढ़ाई के लिए कोर्स कंटेंट हिंदी में तैयार किया जा चुका था। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया हिंदी में पढ़ाने की मंजूरी नहीं दी, जबकि हिंदी में कोर्स तैयार कराने का काम भी उनका ही था।
प्रो. छीपा का कहना है कि हिंदी भाषा में पाठ्यक्रम धीरे-धीरे तैयार होता रहेगा, लेकिन तकनीकी पेंच काे खत्म कराने के लिए एनएमसी से आदेश जारी कराने की जरूरत है। प्रो. छीपा कहते हैं कि दूसरे देशों में भी हमारे बच्चे पढ़ने जाते हैं। वह जिस भी भाषा में पढ़कर आएं, लेकिन उनका टेस्ट लेकर उन्हें भारत में प्रैक्टिस में करने की मंजूरी दी जाती है। ऐसे में हमारे ही देश में हमारी ही मातृभाषा में पढ़ने वाले को लेकर स्पष्ट नीति जल्द जारी होनी चाहिए। मप्र सरकार इसके लिए आगे आ सकती है।
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