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इंडियन नेशनल यंग एकेडमी ऑफ साइंसेस का सर्वे: महामारी में 40% रिसर्चर्स का काम रूका, फैलोशिप की तारीख 6 माह आगे बढ़ाने की स्कॉलर्स ने की मांग

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कोविड ने शिक्षा के साथ-साथ रिसर्च व पीएचडी पर भी बुरा असर डाला है। 40 प्रतिशत पीएचडी स्कॉलर्स का काम कोविड के दौरान पूरी तरह रुक गया। फील्ड वर्क, फंडिंग में देरी या उसका न मिलना व लैबोरेटरीज तक पहुंच न पाने से स्कॉलर्स का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ। इंडियन नेशनल यंग एकेडमी ऑफ साइंसेस (इनयास) के सर्वे में ये तथ्य सामने आए हैं। सर्वे के मुताबिक महामारी में संस्थान स्टूडेंट्स को फैलोशिप की राशि नहीं दे पाए, जो कि उनके लिए आय का एकमात्र जरिया थी।

6 फीसदी प्रतिभागियों को सुपरवाइजर से मदद मिली

28 फीसदी प्रतिभागियों को अपने संस्थानों से आर्थिक सहयोग नहीं मिला था और 14 प्रतिशत को थोड़ी मदद मिली थी। 54 फीसदी स्कॉलर्स के पास रिसर्च के लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं थी। मात्र 6 फीसदी को अपने सुपरवाइजर या गाइड से मदद मिली थी। थीसिस पूरी होने से पहले ही 54 प्रतिशत कैंडिडेट्स की फैलोशिप रोक दी गई।

शेष 47 प्रतिशत की फैलोशिप में 6 महीने से एक साल का समय बचा था। ज्यादातर कैंडिडेट्स ने बताया कि वे इस अवधि में अपनी फैलोशिप पूरी करने में असमर्थ होंगे। इनयास ने यह सर्वे यह देखने के लिए किया था कि महामारी ने किस तरह शुरुआती रिसर्चर्स के कॅरिअर पर असर डाला।

लैबोरेटरीज में रखे सैंपल खराब हुए

लॉकडाउन ने कई लैबोरेटरीज में रखे रिसर्च सैंपल्स व कैमिकल्स के बेकार हो जाने के खतरे को बढ़ा दिया। इसका खामियाजा कई स्टूडेंट्स को भुगतना पड़ा। इससे उनमें तनाव का स्तर भी बढ़ा। 18% युवा, रिसर्च लैब में बिना आय या बहुत कम आय में काम करते रहे। 36% ने कहा कि वे अपने एकेडमिक वर्क को आगे बढ़ाने या नौकरी के लिए दूसरे देशों में अवसर तलाश रहे हैं।

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फैलोशिप के लिए 6 माह की डेडलाइन बढ़े

ज्यादातार स्कॉलर्स अपनी फैलोशिप डेडलाइन को कम से कम छह माह आगे बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने देश के केंद्रीय संस्थानों में पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप पदों को बढ़ाने व आयु सीमा में छूट देने की मांग भी की है। आयु सीमा न केवल पोस्ट डॉक्टरल पदों पर आवेदन के लिए बल्कि एंट्री लेवल जॉब्स के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।

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एआईएसएचई -2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक, इंजीनियरिंग व टेक्नोलॉजी स्ट्रीम के बाद सबसे अधिक छात्र साइंस में पीएचडी करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019-20 में 50,936 छात्रों ने पीएचडी में प्रवेश लिया। इंजीनियरिंग व टेक्नोलॉजी के छात्रों के लिए यह आंकड़ा 52,478 था।

यूनिवर्सिटी के छात्रों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा

यह सच है कि पहली लहर में काफी नुकसान हुआ। लेकिन सेकेंड वेव में इंस्टीट्यूट्स ने ऑनलाइन क्लासेस व कुछ अन्य तरीकों से रास्ते निकाले। रिसर्च इंस्टीट्यूट्स ने फिर भी इसे मैनेज कर लिया। लेकिन यूनिवर्सिटी के छात्रों को इसका ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। अवधि बढ़ाने का मुद्दा सही है।

-डॉ. अनिर्बान बसु, सीनियर साइंटिस्ट, नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, मानेसर

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