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केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने शुक्रवार को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गो, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों आदि के 6,229 रिक्त पदों को अक्टूबर तक अभियान चलाकर भरने के लिए कहा। उन्होंने इसके लिए संबंधित कुलपतियों से अगले सप्ताह भर्ती का विज्ञापन जारी करने को कहा। प्रधान ने 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ डिजिटल माध्यम से बैठक में यह बात कही। प्रधान ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्तियों को भरा जाना एक महत्वपूर्ण विषय है। उन्होंने कहा, ”अक्टूबर, 2021 तक करीब 6,000 रिक्त पदों को भरने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय मिशन मोड पर काम करेंगे।”
उन्होंने कहा कि इन विश्वविद्यालयों में कुल 6,229 पद रिक्त हैं, जिसमें अनुसूचित जाति के 1,012 पद, अनुसूचित जाति के 592, अन्य पिछड़ा वर्ग के 1,767 , आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 805, दिव्यांग श्रेणी के 350 तथा अन्य सामान्य वर्ग के पद रिक्त हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा कि सितंबर महीना महत्वपूर्ण है। इस महीने में शिक्षक पर्व मनाया जायेगा। पांच सितंबर को राष्ट्रपति और सात सितंबर को प्रधानमंत्री का संबोधन होगा।
अक्टूबर तक वैकेंसी भरने की बात भी कही
उन्होंने कहा, ”हम इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में रिक्तियों को अभियान के रूप में भरने की दिशा में कार्य करें। सितंबर, अक्टूबर महीने में इन छह हजार से अधिक रिक्तियों को भरें।” प्रधान ने कहा, ”सभी रिक्तियों के संबंध में अगले सप्ताह विज्ञापन आ जाने चाहिए, तभी इस अभियान को पूरा किया जा सकेगा।”
कई मुद्दों पर हुई चर्चा
प्रधान ने 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन, अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, खुली और ऑनलाइन शिक्षा, अकादमिक सत्र 2021-22 की शुरुआत, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के शिक्षकों की बची हुई रिक्तियों को भरने एवं आजादी का अमृत महोत्सव जैसे विषयों पर चर्चा की । कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों का दायित्व है कि अनुसंधान एवं विकास कार्यों को भारत की जरूरतों के हिसाब से आगे बढ़ाया जाए।
नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होनी शुरू हो गयी है। कुछ विश्वविद्यालयों ने अपनी जिम्मेदारी निभायी भी है और नयी नीति के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करने सहित अन्य कार्यों पर काम शुरू किया है। उन्होंने इस संदर्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) द्वारा वर्तमान तीन साल के पाठ्यक्रम के साथ चार वर्षीय कोर्स शुरू करने का जिक्र किया । प्रधान के अनुसार, हमारे विश्वविद्यालय रचनात्मकता, नवाचार और अवसरों को पोषण प्रदान कर रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भारत को उभरती हुई नई वैश्विक व्यवस्था में शीर्ष स्थान पर रखने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।”
शिक्षा मंत्री ने कहा, ”पठन पाठन विश्वविद्यालयों का प्राथमिक कार्य है । हम सभी छात्र रहे हैं और छात्र का स्वभाव विरोधी होता है । संस्थान में अनुशासन होना चाहिए लेकिन लोकतंत्र के रूख को साथ लेकर भी चलना पड़ेगा।” प्रधान ने कहा, ”उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नयी नीति को आम सहमति के आधार पर लागू करना चाहिए । इसमें रचनात्मकता एवं नवाचार पर जोर देने के साथ नियमित रूप से एवं समयबद्ध तरीके से पाठ्यक्रम को अद्यतन करना जरूरी है।”
विदेशी भाषाएं सीखने पर जोर
उन्होंने केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से कहा, ”यह तभी संभव होगा जब सभी इस दिशा में प्रयास करेंगे । आप सभी को इसे अपने तरीके से लागू करना है। उन्होंने जर्मन एवं विभिन्न यूरोपीय भाषाओं, अरबी, जापानी भाषा पढ़ने के महत्व पर जोर दिया। शिक्षा मंत्री ने विश्वविद्यालयों से भारत को पूर्ण रूप से साक्षर बनाने के लिए रणनीति बनाने का आह्वान किया, साथ ही आजादी के अमृत महोत्सव के प्रतीक के रूप में ‘पोषण माह’ के दौरान देश की पोषण चुनौती का सामना करने में योगदान देने के लिए भी कहा।
खेलों को दें बढ़ावा
प्रधान ने कुलपतियों से यह भी अनुरोध किया कि वे अपने विश्वविद्यालयों में खेलों को प्रोत्साहित करें, जिससे देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा मिल सके।
भारतीय भाषाओं को दें बढ़ावा
भारतीय भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए शिक्षा मंत्री ने कहा, ”मैं अंग्रेजी भाषा का विरोधी नहीं हूं, लेकिन भारतीय भाषाओं को महत्व देना होगा।” कोई भी छात्र किसी विषय को अपनी मातृभाषा में पढ़ने पर उसे सूक्ष्मता से समझता है और उसे किसी भी भाषा में पुन: प्रस्तुत कर सकता है। ऐसे में मातृ भाषा को महत्व देना होगा ।
उन्होंने प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा जैसे विषयों पर शिक्षा को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि जब एमआईटी जैसे दूसरे देश में स्थित संस्थान में आतंकवाद निरोधक (काउंटर टेररिज्म) विषय पर चर्चा हो सकती है तो भारतीय संस्थानों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। आजादी के अमृत महोत्सव का जिक्र करते हुए प्रधान ने कहा कि इस संबंध में शिक्षण संस्थानों की एक व्यापक रूपरेखा होना चाहिए कि आने वाले 25 वर्ष में और साल 2047 तक देश कैसा बने ।
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