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दुनिया के लिए खतरे की घंटी समुद्र तट के पास फसी 270 व्हील्स

गुवाहाटी

समुद्र तट पर 270 ब्लू व्हेल फंसी मिली है जिसको लेकर दुनिया के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। मरीन बायोलॉजिस्ट्स को ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया में मैक्वेरी हार्बर समुद्र तट पर 20 सितंबर को करीब 270 पायलट व्हेल के फंसे होने की सूचना मिली थी। इन व्हेल मछलियों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर बचाव अभियान शुरू किया गया। हालांकि कम से कम 25 पायलट व्हेलों की मौत हो चुकी थी।

एरियल सर्वे करने पर पहले लगा कि करीब 70 व्हेल फंसी हैं। बाद में करीब से देखने पर सही संख्या का पता चल पाया। तस्मानिया के प्राथमिक उद्योग, पार्क, जल और पर्यावरण विभाग ने कहा कि ये व्हेल मैक्वेरी हार्बर के उथले पानी में तीन समूहों में फंसी थीं।

मैक्वेरी हार्बर तस्मानिया राज्य की राजधानी होबार्ट से उत्तर-पश्चिम में 200 किलोमीटर दूर स्थित है।

तस्मानिया पार्क एंड वाइल्डलाइफ सर्विस के क्षेत्रीय प्रबंधक निक डेका ने कहा कि तस्मानिया में समुद्र तट पर व्हेलों के फंसे होने की घटना कोई नई या असामान्य घटना नहीं है। आमतौर पर हर दो या तीन हफ्तों में एक बार तस्मानिया में डॉल्फिन और व्हेल के फंसे होने की घटना होती है। लेकिन इतने बड़े समूह में मछलियों के फंसने की घटना 10 साल बाद हुई है। इससे पहले ऐसी घटना 2009 में हुई थी। उस समय समुद्र तट पर 200 व्हेलों को फंसा हुआ देखा गया था। 2018 में भी ऐसी ही एक घटना में न्यूजीलैंड के तट पर करीब 100 पायलट व्हेलों की मौत हो गई थी।

पायलट व्हेल समुद्री डॉलफिन की एक प्रजाति है जो 23 फीट तक लंबी होती है। इसका वजन 3 टन तक हो सकता है। ये व्हेल समूह में यात्रा करती हैं। ये समुद्र तट पर अपने समूह के एक लीडर को फॉलो करती हैं। समूह में किसी साथी के घायल होने पर उसके आसपास जुट जाती हैं। इस तरह समूह में व्हेलों के फंसने की वजह अभी तक पता नहीं चली है। कई बार कोई एक व्हेल किनारे पर आ जाती है और फिर तकलीफ में दूसरी व्हेलों के पास संकेत भेजती हैं उन संकेतों को पाकर दूसरी व्हेल मछलियां भी उसके पास आने लगती हैं और फंसती चली जाती हैं।

व्हेल मछलियों और डॉल्फिंस का समुद्री तट पर आकर फंस जाने को सिटेसियन स्ट्रैंडिंग कहते हैं. इसे बीचिंग भी कहते हैं। यानी यह एक तरह की खुदकुशी की प्रक्रिया है। ज्यादातर मछलियां समुद्री तट पर फंसने के बाद मर ही जाती हैं। हालांकि, बीचिंग यानी समुद्री तट पर मछलियों के फंसने की प्रक्रिया को अभी तक समझा नहीं जा सका है। कभी-कभार एक मछली फंसती है तो उसे हादसा कहते हैं। लेकिन सामूहिक तौर पर समुद्र तट पर आना अभी तक समझा नहीं जा सका है।

व्हेल मछलियों और डॉल्फिंस का समुद्री तट पर आकर फंस जाने को सिटेसियन स्ट्रैंडिंग कहते हैं। इसे बीचिंग भी कहते हैं। यानी यह एक तरह की खुदकुशी की प्रक्रिया है। ज्यादातर मछलियां समुद्री तट पर फंसने के बाद मर ही जाती हैं। हालांकि, बीचिंग यानी समुद्री तट पर मछलियों के फंसने की प्रक्रिया को अभी तक समझा नहीं जा सका है। कभी-कभार एक मछली फंसती है तो उसे हादसा कहते हैं। लेकिन सामूहिक तौर पर समुद्र तट पर आना अभी तक समझा नहीं जा सका है।

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कई बार कोई बड़ा भूकंप या ज्वालामुखीय गतिविधियां होने से पहले समुद्र के अंदर अलग तरह की जियोमैग्नेटिक लहरें निकलती हैं, जो व्हेल और डॉलफिंस के सोनार सिस्टम को बुरी तरह से प्रभावित कर देती हैं। इससे ये मछलियां अपनी दिशा निर्धारण नहीं कर पाती और समुद्री तटों की तरफ आकर फंस जाती हैं। हालांकि, इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। लेकिन अक्सर ये देखने को मिला है जब भी कोई बड़ी आपदा आई है जैसे 2011 की जापान सुनामी। तब न्यूजीलैंड के आसपास कई मछलियां सुनामी से पहले ही समुद्र तट पर आकर मारी गई थीं।

कई बार बच्चे को जन्म देने में दिक्कत होने पर भी ये मछलियां तटों की तरफ या छिछले पानी में आती हैं। कई बार शिकार के लिए आती हैं और फंस जाती हैं। समुद्र में चलने वाले जहाजों के बीच कई बार सोनार के जरिए संदेश भेजे जाते हैं। ये सोनार संदेश व्हेल्स और डॉलफिंस के दिशा निर्धारण करने वाले सोनार सिस्टम को प्रभावित करता है।

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