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सपना का हर सपना हुआ अपना, मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना से

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सपना का हर सपना हुआ अपना, मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना से


 


भोपाल : बुधवार, जून 2, 2021, 18:04 IST

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नाम था सिकंदर, काम था मजदूरी। सिकंदर की पत्नी सपना उसके काम में हाथ बँटाकर अपने पति के हर सपने को पूरा करना चाहती थी। जैसे-तैसे सही परिवार का गुजारा चल जाता था। परंतु सपना के सपनों में छोटा ही सही, परंतु कुछ और करने की चाहत थी। उसकी चाहत को पंख तब लगे, जब मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना और ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से उसकी खुद की छोटी-सी किराने की दुकान उसके ही गाँव में खुल गई।

ये कहानी सपना नहीं, हकीकत है, ग्वालियर जिले की ग्राम पंचायत मुख्तियारपुरा से जुड़े ग्राम तोर की निवासी श्रीमती सपना जाटव और उनके पति श्री सिकंदर जाटव की। सपना का कहना है कि कोरोना कर्फ्यू के दौरान भी हमारे परिवार पर रोजी-रोटी का संकट नहीं आया। गाँव में हमारी छोटी-सी किराने की दुकान खूब चली। सपना कहती है भला हो ग्रामीण आजीविका मिशन और मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना का, जिसने हमारे परिवार को आत्म-निर्भर बना दिया है।

सपना नहीं हकीकत

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सपना जाटव ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित हुए लोढ़ी माता स्व-सहायता समूह से जुड़ी हैं। वे बताती हैं कि पति की मजदूरी से जब घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया, तो हमने स्व-सहायता समूह से मदद लेकन किराने की दुकान खोलने की सोची। इसी बीच प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन से प्रभावित हुए गाँव में फेरी लगाकर सब्जी-भाजी व रोजमर्रा की जरूरत का छोटा-मोटा सामान बेचने वाले पथ-विक्रेताओं के लिये मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ-विक्रेता योजना शुरू की। मेरे पति ने भी इस योजना से मदद लेने के लिये ऑनलाइन फार्म भरा। जल्द ही हमें 10 हजार रुपये की मदद मिल गई। इसके अलावा हमने 25 हजार रुपये समूह से लिये। इस प्रकार कुल 35 हजार रुपये लगाकर हमने गाँव में सपना किराना स्टोर खोला। जब कोरोना की दूसरी लहर आई और कोरोना कर्फ्यू लगा, तब इस किराने की दुकान ने हमें टूटने से बचा लिया। हमारी दुकान खूब चली और प्रतिमाह हमें 8 से 10 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

श्रीमती सपना बताती हैं कि उनके गाँव में 7 स्व-सहायता समूह बने हैं, जिनसे 93 महिलाएँ जुड़ी हैं। स्व-सहायता समूहों ने महिला सशक्तिकरण को बड़ी रफ्तार दी है। ग्रामीण आजीविका मिशन से कौशल उन्नयन प्रशिक्षण और आर्थिक मदद लेकर गाँव की महिलाओं ने आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाये हैं।

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 (कहानी सच्ची है) 


मुकेश दुबे/हितेन्द्र भदौरिया

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