काम की खबर निजी अस्पतालों में 12 लाख में होने वाला बोनमैरो ट्रांसप्लांट अब एम्स में पांच लाख में हो जाएगा Digital Education Portal

एम्स में पहला ट्रांसप्लांट सफल, छत्तीसगढ़ के मरीज को भाई ने दान की स्टेम सेल
भोपाल । प्रदेश के लोगों को बोनमैरो ट्रांसप्लांट कराने के लिए अब दिल्ली, मुंबई या अन्य शहर में नहीं जाना होगा। एम्स भोपाल में यह यह सुविधा शुरू हो गई है। निजी अस्पतालों में ट्रांसप्लांट का खर्च करीब 12 लाख्ा रुपये आता है जो एम्स में पांच लाख रुपये में ही हो जाएगा। यहां पिछले महीने छत्तीसगढ़ के रहने वाले एक युवक को बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया गया जो सफल रहा। खून की लाइलाज बीमारियों जैसे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया एप्लास्टिक एनीमिया के इलाज में ट्रांसप्लांट पूरी तरह से सफल माना जाता है। इन बीमारियों में शरीर में हमेेशा खून की कमी रहती है। इसके अलावा अलग-अलग तरह के ब्लड कैंसर का इलाज भी बोनमैरौ ट्रांसप्लांट से किया जाता है।
एम्स भोपाल की अध्ाीक्षक डा. मनीषा श्रीवास्तव ने बताया कि युवक एक्यूट मिलाइड ल्यूकेमिया से पीड़ित था। रायपुर के एक अस्पताल में कीमोथेरेपी देने के साथ ही उसे बोनमैरो ट्रांस्प्लांट की सलाह दी गई थी। वह फरवरी में एम्स भोपाल आया। यहां जांच के बाद ट्रांसप्लांट की योजना बनाई गई थी। सभी जांचों के बाद युवक के बड़े भाई की स्टेम सेल सेप्रेटर के जरिए निकालकर 22 अप्रैल का मरीज को ट्रांसप्लांट की गई। स्टेम सेल पूरी तरह प्रत्यारोपित हो गई हैं। एम्स के क्लीनिकल हीमैटोलाजिस्ट डा. सचिन बंसल, डा. मनीषा श्रीवास्तव और अन्य डाक्टरों ने ट्रांसप्लांट किया है। एम्स के निदेश्ाक डा. नितिन नागरकर ने इसके लिए डाक्टरों को बंधाई दी है।
यह होती है ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया
— मरीज के भाई-बहन में किसी की स्टेम सेल लेकर मरीज की स्टेम सेल से जांच कराई जाती है। इसमें ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) का मिलाना होना जरूरी है। यह एक प्रोटीन है।
— इसके बाद डोनर की बोनमैरो से स्टेम सेल सेप्रेटर मशीन से निकाली जाती हंै।
— मरीज को ट्रांसप्लांट करने के पहले कीमोथैेरेपी दी जाती है, जिससे नई कोशिकाएं नहीं बनें।
— इसके बाद मरीज की वजन के लिहाज से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की जाती है।
क्या हैं स्टेम सेल
इन्हें मातृ कोश्ािका भी कहा जाता है। श्वेत रक्त कोशिकाएं, लाल रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स इन्हीं से बनते हैं। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट करने से नई कोशिकाएं बनने लगती हैं। इस दौरान कीमोथेरेपी के जरिए पहले से चल रही कोश्ािकाओं के बनने की प्रक्रिया को रोक दिया जाता है। किसी अन्य व्यक्ति से स्टेम सेल लेकर ट्रांसप्लांट को एलोजेनिक और जब व्यक्ति की ख्ाुद की स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की जाती है तो इसे आटोलोगस कहा जाता है।
इसलिए लगता है खर्च
एचएलए मिलान करने और अन्य जांचों के अलावा कीमोथेरेपी दी जाती है। इसके अलावा दवाओं का खर्च भी ज्यादा है। ट्रांसप्लांट होने तक सरकारी अस्पतालों में करीब पांच लाख रुपये लग जाते हैं। इसके बाद करीब डेढ़ साल तक दवाएं और जांचों का खर्च मिला लें तो यह खर्च 12 लाख तक पहुंच जाता है। इसी तरह से निजी अस्पतालों ट्रांसप्लांट तक का खर्च 12 लाख आता है। इसके बाद भी करीब 12 लाख रुपये जांच व इलाज में लगता है। इस तरह कुल खर्च करीब 24 लाख पड़ता है।
-अभी सरकारी अस्पतालों में सिर्फ एमजीएम में थी सुविधा
अभी तक प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ एमजीएम मेडिकल कालेज इंदौर में यह सुविधा थी। चार साल से यहां पर ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं। जीएमसी भोपाल में भी ट्रांसप्लांट शुरू करने की तैयारी है।
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