Loan EMI moratorium Scheme: दिसंबर तक बढ़ाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट तैयार।
नई दिल्ली, पीटीआइ:
नई दिल्ली, पीटीआइ। Loan EMI moratorium Scheme: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आरबीआई की लोन मोरेटोरियम योजना को इस साल दिसंबर तक बढ़ाए जाने की मांग को लेकर दाखिल की गई नई याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है। याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष दलील दी कि कोरोना संकट से पैदा हुई जिन विषम परिस्थितियों को देखते हुए मोरेटोरियम सुविधा (moratorium scheme) दी गई थी वह अभी टली नहीं हैं। ऐसे में इसे इस वर्ष दिसंबर तक विस्तार दिया जाए।
जस्टिस अशोक भूषण (Justice Ashok Bhushan) की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता विशाल तिवारी (Vishal Tiwari) की याचिका को स्वीकार करते हुए इसे संबंधित मसले पर पूर्व की याचिका के साथ लगाने के निर्देश दिए।
बता दें कि कोरोना संकट को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने इस वर्ष मार्च में खुदरा लोन ग्राहकों को ईएमआइ भुगतान से राहत दी थी। पहले यह राहत मार्च से मई और फिर जून से अगस्त तक बढ़ाई गई जो अवधि 31 अगस्त को खत्म हो रही है।
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नई याचिका पर:
उक्त नई याचिका पर पूर्व की यचिका के साथ सुनवाई एक सितंबर को होगी।
बीते 26 अगस्त को पूर्व की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया था
कि वह एक हफ्ते के भीतर इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करे। याचिका में कहा है
कि रिजर्व बैंक की 27 मार्च की अधिसूचना में किस्तों की वसूली स्थगित तो की गई है
लेकिन कर्जदारों को इसमें काई ठोस लाभ नहीं दिया गया है।
याचिका में स्थगन अवधि के दौरान किस्त पर ब्याज वसूले जाने से राहत देने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार से कहा था कि वह इस मामले में आरबीआइ की आड़ नहीं ले
सकती है। सरकार ने ही लॉकडाउन लगाया था तो लोगों को उस अवधि में हुई दिक्कत से निजात भी
वही दिलाए। मोरेटोरियम के दौरान लोन की इएमआइ के ब्याज पर भी ब्याज वसूले जाने के
मामले में केंद्र की ओर से रुख स्पष्ट नहीं किए जाने पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई थी।
आरबीआइ ईएमआइ मोरेटोरियम:
उधर सूत्रों के मुताबिक आरबीआइ ईएमआइ मोरेटोरियम 31 मई से आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों का कहना है कि कर्ज लेने वाले ग्राहकों के लिए यह अस्थायी राहत थी। यदि छूट की अवधि को छह महीने से आगे बढ़ाया जाता है, तो इससे कर्ज लेने वाले ग्राहकों का कर्ज व्यवहार प्रभावित हो सकता है। सूत्रों का तर्क है कि भुगतान की अवधि शुरू होने के बाद डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है। कई बैंकों ने आरबीआइ से आग्रह किया है कि इस सुविधा को आगे नहीं बढ़ाया जाए।
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