☺CM-RISE-LEARNING☺
(कोर्स-2-शिक्षक की भूमिका)
साथियो जब सी एम राइज प्रशिक्षण शुरू हुआ तो मुझे लगा कि अगर मैं एक शिक्षक के रूप में खुद को तरोताजा रखना चाहता हूँ तो मेरे लिये यह एक शानदार अवसर है जब मैं खुद को देख सकता हूँ, परख सकता हूँ और इस लॉकडाउन को रचनात्मक बनाकर,कुछ नया सीखकर नये उत्साह के साथ एक शिक्षक के रूप में शिक्षण की बहुत सारी बारीकियों को जानकर उनका प्रभावी उपयोग भी कर सकता हूँ।
इस चिंतन के चलते कोर्स में पंजीयन किया और दीक्षा एप डाउनलोड कर अल्पविराम के प्रश्नों के साथ जिन्होंने पहले ही अंदर हलचल पैदा कर दी थी, के साथ पहला वीडियो देखकर पहला कोर्स पूरा किया। जैसे ही दूसरा कोर्स आया तो प्री वर्क, कोर्स वर्क और पोस्ट वर्क के तीन स्तर दिखे।
प्री वर्क के दौरान एक शिक्षक के रूप में खुद पर गर्व होना और उसके लिये एक प्रतीकात्मक वीडिओ जिसमें एक शिक्षक का सतत प्रयास कर बच्चों को सपोर्ट करना दिल को छू गया और लगा कि सतत प्रयास से बच्चे उड़ान भरते ही हैं। जब प्रश्नोत्तरी की तो जैसे पूरा निचोड़ सामने आ गया।
कोर्स सत्र में प्रश्न यह था कि अगर बच्चों को सिखाना है और सपोर्ट करना है तो कैसे? इसका उत्तर मिला जब हमने गिजुभाई बधेका की कहानी दिवास्वप्न के कुछ अंश सुने जिसमें एक शिक्षक की चुनौतियों से लड़ाई खुद शिक्षक ने लड़ी और नये नये प्रयोग करके बच्चों को अपना बना लिया,उनसे आत्मीय जुड़ाव स्थापित कर लिया। भाव से कहानी सुनाता हुआ शिक्षक और ध्यान से कहानी सुनते हुए बच्चे कक्षा को जीवंत कर गये। शिक्षक और बच्चों का जुड़ाव होते ही सीखने की रेल पटरी पर तेजी से दौड़ पड़ी।
अपनी मान्यताओं और परंपरागत विचारों को चुनौती देते हुए और साथियों की नकारात्मक बातों के बावजूद शिक्षक द्वारा स्कूल में हर तरफ ऊर्जा और उल्लास का माहौल उत्पन्न कर देना प्रेरणा दे गया। कभी कभी बच्चों के नहीं सीखने पर शिक्षक के चिंतन और चिंतन के बाद फिर नये तरीके का उपयोग करके बच्चों के सीखने पर शिक्षक को होने वाली ख़ुशी महसूस हुई। इस पुस्तक की कल्पना को अपने स्कूल में जीवंत करने वाले शिक्षक सुभाष यादव जी की अभिव्यक्ति ने हमारे अंदर यह भरोसा पैदा किया कि बच्चों को उनके स्तर तक जाकर समझने और उन्हें स्नेह दुलार देने से सभी शिक्षक बच्चों के प्यारे शिक्षक बनकर उन्हें बेहतर सिखा सकते हैं।
पोस्ट वर्क से पता चला कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (एन सी एफ -2005) की हमसे क्या अपेक्षायें हैं और उन्हें पूर्ण करने हेतु एक शिक्षक स्रोत बनने की दिशा क्या होगी?
क्रमबद्ध ढंग से एक एक चरण को पूर्ण करते हुए मैने एक पेन से सभी बातों को क्रमशः नोट किया है और अब यह एक पुस्तिका का रूप ले रही है। यह करना जरूरी था ताकि मैं आगे आने वाली बातों को पिछली समझ से कभी भी जोड़ सकूँ और मुझे बार बार पुराने मॉड्यूल न खोलना पड़े।
और हाँ इस दौरान एक लाइन तो जैसे मुझे छू गईं जिसमें यह कहा गया कि जब पढ़ने की मजबूरी न हो तब हम क्या पढ़ेंगे,यह तय करेगा हमारी दिशा। इसे सुनने के बाद लगा कि हमें लगातार पढ़कर खुद को अपडेट रखना है क्योंकि हम ही वो शिक्षक हैं जो बच्चों के दिवास्वप्न को यथार्थ में बदलेंगे।
राजेन्द्र असाटी
शाला सिद्धि कक्ष
रा.शि.के.भोपाल