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गुना में जब 5 वर्ष बंधक बना रहा जनादेश: री-काउंटिंग न हो इसलिए मतपेटी में भरा गया पानी; हारने वाले ने 5 वर्ष लिए सत्ता के मजे Digital Education Portal

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प्रतीकात्मक फोटो। - dainik bhaskar

प्रतीकात्मक फोटो।

गुना। प्रदेश में पंचायत चुनाव की सरगर्मी जारी है। इन दिनों सभी तरफ पंचायत चुनावों की ही चर्चा है। निर्वाचन आयोग ने चुनावों की घोषणा की तो कांग्रेस ने आपत्ति लगा दी। याचिका अब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच झूल रही है। अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। उम्मीदवार भी कब तक इंतजार करते। उन्होंने भी नामांकन दाखिल करना शुरू कर दिया है।

पंचायत चुनावों की उठापठक के बीच 2010 के पंचायत के चुनाव की ऐसी कहानी है, जिसमे जनादेश को 5 वर्षों तक बंधक बनाकर रखा गया। जो प्रत्याशी जीता, उसे जीत का प्रमाण पत्र नहीं मिला। वहीं जिस प्रत्याशी की हार हुई, उसे जीता हुआ घोषित कर दिया। 5 वर्षों तक वह पद के सारे सुख भोगता रहा। कोर्ट के निर्देश के बाद रिकॉउंटिंग हुई और वास्तविक प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र दिया गया। लेकिन तब तक जा पंचायत का कार्यकाल ही पूरा हो चुका था।

मामला वर्ष 2010 का है। पंचायत चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी किसमत आजमा रहे थे। जिला पंचायत सदस्य के लिए वार्ड 1 बजरंगगढ़ पर भी 23 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाखिल किया था। इसमे मानसिंह परसौदा और रक्षित सिंह गढ़ा मुख्य प्रतिद्वंदी थे। दोनों के बीच ही टक्कर मानी जा रही थी। वोट डाले गए और मतगणना भी हो गयी। इन मतों के सारणीकरण(वह प्रक्रिया जिसमें जनपद और जिला स्तर पर मिले मतों को एकत्रित कर गणना की जाती है) के लिए सभी उम्मीदवारों को 6 फरवरी का समय दिया गया। कलेक्टर ने आदेश जारी कर उम्मीदवारों को 6 फरवरी के समय दिया।

लेकिन अचानक 5 को ही सारणीकरण कर दिया गया और रक्षित सिंह को विजयी घोषित कर दिया गया। जनपद के लिए बनाए गए रिटर्निंग ऑफिसर ने ही जिला पंचायत का सारणीकरण कर दिया, जबकि उसे अधिकार ही नहीं था। उसने रिजल्ट की फाइनल शीट भी बना दी। एक पोलिंग पर परसौदा को 158 वोट मिले थे, वहां 58 वोट बता दिए गए। वहीं एक पोलिंग पर रक्षित सिंह को एक भी वोट नहीं मिला था, वहां उन्हें 55 वोट बता दिए गए। जैसे ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानसिंह परसौदा को इसकी खबर हुई, उन्होंने जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष तत्काल रिकॉउंटिंग का आवेदन लगाया।

कलेक्टर ने रिकॉउंटिंग न कराकर निर्वाचन आयोग से मार्गदर्शन मांग लिया। चुनाव आयोग ने भी केवल एक पोलिंग पर फिर से मतगणना कराने का मार्गदर्शन दे दिया। इसके बाद परसौदा ने आयुक्त को याचिका लगाई। आयुक्त ने रिकॉउंटिंग का आदेश दिया। एक महीने में यह कि जानी थी, जो समयावधि गुजर जाने के बाद भी नहीं हो पाई। पुनः कमिश्नर को आवेदन लगाया, जिसके बाद रिकॉउंटिंग हुई। इसमे परसौदा 23 वोट से विजयी हुए। 87 पोलिंग की काउंटिंग की गई।

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मतपत्र भीग गए

इसी दौरान एक और अचंभा सामने आया। विवादित चुनाव के मतपत्र कोषालय के अति सुरक्षित स्ट्रांग रूम में रखे गए थे, इसके बावजूद 16 मतदान केंद्रों के मतपत्र रहस्यमय ढंग से भीगकर पूरी तरह नष्ट हो गए। जबकि कोषालय की छत पूरी तरह सुरक्षित थी। पानी की एक बूंद भी ऊपर से नहीं टपकी थी। मतपेटी में कई अलग-अलग तरह के छेद भी हो गए थे। हालांकि सारणीकरण में उनका रिकॉर्ड मौजूद था और 2011 की पुनर्मतगणना में उन्हें शामिल करने के बावजूद परसौदा 25 वोटों से जीत गए थे। जबकि उन्हें हटाने पर उनकी जीत का अंतर 394 था।

तारीखों में दर्ज घटनाक्रम

5 फरवरी 2010 : जिला पंचायत चुनाव के सारणीकरण और परिणाम की घोषणा कर दी गई। जबकि निर्वाचन आयोग ने 6 फरवरी को उक्त प्रक्रिया कराने के आदेश दिए थे।

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6 फरवरी 2010 : नियम विरुद्ध तरीके से किए गए सारणीकरण के विरोध में मानसिंह ने शिकायत करते हुए पुनर्मतगणना की मांग की।

4 सितंबर 2011 : तमाम शिकायतों के बाद 87 मतदान केंद्रों की पुनर्मतगणना की गई। जिसमें परसौदा 394 मतों से विजय रहे। इसके बावजूद नए परिणाम घोषित नहीं किए गए।

17 अक्टूबर 2014 : हाईकोर्ट ने प्रशासन को आदेश दिया कि वह पुनर्मतगणना के नतीजे जारी करे। इस आदेश को भी चार माह तक दबाकर रखा गया। जब तक अवमानना याचिका दाखिल नहीं कर दी गई।

19 फरवरी 2015 : अंतत परसौदा को विजयी घोषित किया गया और कलेक्टर श्रीमन शुक्ला ने उन्हें प्रमाणपत्र दिया। हालांकि इस दौरान जिला पंचायत का पूरा कार्यकाल गुजर गया।

प्रमाण पत्र गले में लटकाकर घूमना

इस मामले में सबसे हैरान कर देने वाला तथ्य यह रहा कि 2011 में ही पुनर्मतगणना हो चुकी थी, जिसमें मानसिंह विजयी भी हो गए थे। उन्हें रक्षित सिंह के मुकाबले 394 मत ज्यादा मिले थे। इसके बावजूद प्रशासन ने आधिकारिक रूप से उन्हें जीता घोषित नहीं किया। अदालत में दर्ज परिवाद के मुताबिक राज्य निर्वाचन आयोग और कमिश्नर से मार्गदर्शन के नाम पर प्रशासन के अधिकारी पत्राचार करते रहे। इस पूरी लालफीताशाही में चार साल गुजार दिए गए। तब तक पंचायत का कार्यकाल पूरा हो गया। उसके बाद जाकर प्रशासन ने हारे प्रत्याशी को जीता माना और प्रमाणपत्र प्रदान किए। एक अधिकारी ने उनसे यह तक कह दिया कि अब इस जीत के प्रमाण पत्र को गले मे लटकाकर घूमना।

मानदेय की लड़ाई अभी जारी है…..

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