“शाला सिद्धि – हमारी शाला ऐसी हो” मार्गदर्शिका (द्वितीय संस्करण) मूल्यांकन से शाला उन्नयन का कार्यक्रम राज्य शिक्षा केंद्र मध्यप्रदेश
“शाला सिद्धि – हमारी शाला ऐसी हो” मार्गदर्शिका (द्वितीय संस्करण) मूल्यांकन से शाला उन्नयन का कार्यक्रम राज्य शिक्षा केंद्र मध्यप्रदेश
शाला सिद्धि हमारी शाला ऐसी हो
शाला सिद्धि के बारे में
“शाला सिद्धि – हमारी शाला ऐसी हो” कोई नया कार्यक्रम नहीं हैं अपितु पूर्व वर्षों में शिक्षा की गुणवत्ता के क्षेत्र में किये गए विभिन्न प्रयासों को एकीकृत कर इन्हें सुनियोजित रूप से क्रियान्वयन करने का प्रयास है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु शाला का उन्नयन से तात्पर्य यह है कि शाला का विकास इस प्रकार से हो कि शाला की अकादमिक एवं सह-अकादमिक प्रक्रियाओं से विद्यार्थियों को भयमुक्त एवं आनंददायी वातावरण में सीखने के अवसर मिलें और प्रत्येक विद्यार्थी अपनी आयु के अनुरूप निर्धारित दक्षताएँ और कौशलों को अर्जित कर सके।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का उद्घाटन(Opens in a new browser tab)
शाला सिद्धि प्रदेश की समस्त शालाओं में हुआ लागू(Opens in a new browser tab)
निष्ठा प्रशिक्षण कार्यक्रम मार्गदर्शिका 2020 DIKSHA पर 16 अक्टूबर से(Opens in a new browser tab)
कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य
- शालाओं के मूल्यांकन की प्रक्रिया विकसित करने के लिए तकनीकी रूप से उत्तम वैचारिक प्रक्रिया का निर्माण करना तथा उनके लिए प्रक्रिया और उपकरण (प्रपत्र) निश्चित करना।
- शाला मूल्यांकन हेतु राज्य में एक संस्थागत प्रक्रिया निश्चित करना तथा उसका क्रियान्वयन करना।
- शाला मूल्यांकन हेतु शालाओं तथा सम्बन्धित अधिकारियों को सक्षम बनाना जिससे शालाएँ निरंतर उन्नति कर सक्षम बनी रहें।
- शाला को इस प्रकार सहयोग देना कि वे अपनी आवश्यकताओं का विश्लेषण कर उनकी पूर्ति हेतु निरंतर प्रयास करने में सक्षम हों।
शाला सिद्धि कार्यक्रम की प्रक्रिया
1 स्व मूल्यांकन
2 बाह्य मूल्यांकन
3 शाला उन्नयन कार्ययोजना
4 फ़ॉलोअप करना
शाला सिद्धि के आयाम एवं मानक
आयाम
गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं, जैसे शाला में उपलब्ध भौतिक संसाधन, प्रशिक्षित शिक्षक, उनका व्यावसायिक उन्नयन, कक्षागत प्रक्रियाएँ, शैक्षिक सहायक सामग्री की उपलब्धता, उनका उपयोग, शाला में शाला-प्रमुख की भूमिका, शाला के विकास में समुदाय का सहयोग इत्यादि। इन क्षेत्रों को इस कार्यक्रम में मूल्यांकन के आयाम कहा गया है।
मानक
शाला सिद्धि हमारी शाला ऐसी हो प्रत्येक आयाम शाला के सुधार हेतु एक बड़ा कार्य क्षेत्र है, इसलिए प्रत्येक आयाम को छोटे-छोटे मानकों में बांटा गया है।
आयाम 1 शाला में उपलब्ध संसाधन – उपलब्धता और पर्याप्तता, गुणवत्ता और उपयोगिता
गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए शाला में आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। किसी शाला के प्रभावी संचालन के लिए, बुनियादी अधोसंरचना तथा सक्रिय संसाधनों का उपलब्ध होना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक शाला को अपनी बुनियादी सुविधाओं के संचालन के लिए भी कई संसाधनों की आवश्यकता होती है। इनमें अधोसंरचना (भवन, पेयजल, शौचालय आदि), मानव संसाधन (शिक्षक, रसोइया, शाला प्रबंधन समिति के सदस्य, सफ़ाई कर्मचारी, विद्यार्थी, बाल कैबिनेट आदि), वित्त, शालेय सामग्री इत्यादि प्रमुख हैं। सक्रिय संसाधन वे संसाधन होते हैं, जो सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में विद्यार्थियों को आरामदायी, सुरक्षित और तनावमुक्त परिवेश में रखते हैं। शाला संसाधनों की मुख्य विशेषता यह होनी चाहिए, कि ये संसाधन शाला में सभी के लिए सुरक्षित और महत्त्वपूर्ण सुविधाओं के रूप में उपलब्ध हों, तथा अधिकतम उपयोग हेतु सभी उपयोगकर्ताओं को सुलभ हों। अतः शालाओं के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि वे सुरक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के मानकों के उच्च स्तर बनाए रखते हुए शाला में सीखने के लिए अनुकूल वातावरण बनाएँ।
आयाम 1 के मानक
- शाला परिसर
- खेल का मैदान, खेल-सामग्री और उपकरण
- कक्षा और अन्य कक्ष
- विद्युत और उपकरण
- पुस्तकालय
- प्रयोगशाला (जहाँ प्रावधान हो)
- कम्प्यूटर (जहाँ प्रावधान हो)
- रैंप
- मध्याह्न भोजन, रसोई एवं बर्तन (जहाँ भोजन विद्यालय परिसर में बनाया जाता है)
- पेयजल
- हाथ धोने की सुविधाएँ
- शौचालय
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आयाम 2 सीखना-सिखाना और उसका आकलन
विद्यार्थियों की उपलब्धि हेतु सीखना-सिखाना एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। सीखने-सिखाने को प्रभावी बनाने के लिए, इन दोनों क्रियाओं की ऐसी योजना बनाना आवश्यक है, जिसमें सीखने का उत्कृष्ट वातावरण निर्मित हो। अतः सीखने के अनुभवों को इस प्रकार से आकार दिया जाए जो सीखने और सिखाने में अधिकतम प्रभावी हो और सीखने की प्रक्रिया विद्यार्थियों के लिए एक यादगार अनुभव बन जाए। इस प्रक्रिया की सफलता के लिए आवश्यक है कि शिक्षक को विद्यार्थियों की सीखने की आवश्यकताओं और प्रक्रियाओं की समझ हो। इसी प्रकार आकलन, शिक्षण-अधिगम का एक अभिन्न पहलू है, और विद्यार्थियों के उपलब्धि स्तर की प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण सूचक। यह शिक्षकों को उनकी कक्षा शिक्षण की प्रभावकारिता पर सोचने के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है। शिक्षक के लिए विषयवस्तु से सम्बन्धित ज्ञान और शैक्षणिक कौशल, दोनों अत्यंत आवश्यक हैं। ये दोनों ही सीखना-सिखाना और आकलन के लिए शिक्षक के दृष्टिकोण को निर्धारित करते हैं।
आयाम 2 के मानक
- विद्यार्थियों के बारे में शिक्षकों की समझ
- शिक्षक का विषय और शैक्षणिक ज्ञान
- शिक्षण के लिए योजना
- सीखने का वातावरण
- सीखने-सिखाने की प्रक्रिया
- कक्षा प्रबंधन
- विद्यार्थियों का आकलन
- सीखने-सिखाने के संसाधनों का उपयोग
- सीखने-सिखाने की विधियों पर शिक्षकों द्वारा स्व-चिंतन
आयाम 3 विद्यार्थियों की प्रगति, उपलब्धि और विकास
शालेय शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य है विद्यार्थियों का समग्र विकास और अच्छी शिक्षा। इसमें शामिल है विद्यार्थियों का संज्ञानात्मक (Cognitive), भावनात्मक (Affective) और कौशलात्मक (Psychomotor) विकास। इसके लिए शालाओं का लक्ष्य होता है कि सभी विद्यार्थी पाठ्यक्रम की सह-शैक्षिक गतिविधियों में भाग ले तथा उनकी प्रगति का अनुवीक्षण हो। इससे शैक्षिक प्रगति के अतिरिक्त उनका व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण भी होता है। इसके लिए आवश्यक है कि शाला उन्हें सह-शैक्षिक क्षेत्रों में भी विकास के अवसर प्रदान करे जिससे उन्हें स्वयं की प्रतिभा और सामाजिक कौशलों के विकास के लिए अवसर प्राप्त हों। आयाम के इस क्षेत्र में इनके विकास के विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित किया गया है। इस आयाम के सम्बन्ध में आर.टी.ई. की कण्डिका 29 (2) पूर्व में उल्लेखित की जा चुकी है।
आयाम 3 के मानक
- विद्यार्थियों की उपस्थिति
- विद्यार्थियों की भागीदारी एवं संलग्नता
- विद्यार्थियों की प्रगति
- विद्यार्थियों का व्यक्तिगत और सामाजिक विकास
- विद्यार्थियों की उपलब्धि
आयाम 4 शिक्षकों का कार्य-प्रदर्शन और उनका व्यावसायिक उन्नयन
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों के कार्य-प्रदर्शन (performance) का सही प्रबंधन (मैनेजमेंट) किया जाना ज़रूरी है। यह उनके प्रदर्शन की समीक्षा करने और उनका व्यावसायिक उन्नयन करने की एक सतत और व्यवस्थित प्रक्रिया है। इससे उनकी क्षमताओं की पहचान और कौशलों का विकास होता है।
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आयाम 4 के मानक
- नवागत शिक्षकों का उन्मुखीकरण
- शिक्षक उपस्थिति
- कार्य-वितरण और कार्य-प्रदर्शन के लक्ष्य
- पाठ्यक्रम की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षकों की तैयारी
- शिक्षकों के कार्य-प्रदर्शन की मॉनिटरिंग
- शिक्षकों का व्यावसायिक उन्नयन
आयाम 5 शाला नेतृत्व और शाला प्रबंधन
कहा जाता है ‘यथा राजा तथा प्रजाः’। किसी भी संस्था का विकास कुशल नेतृत्व और सशक्त प्रबंधन (मैनेजमेंट) के बिना संभव नहीं है। यह आयाम शाला-प्रमुख के इन्हीं गुणों पर केन्द्रित है।
आयाम 5 के मानक
- विज़न और दिशा निर्धारण
- परिवर्तन और सुधार के लिए नेतृत्व
- सीखने-सिखाने के लिए नेतृत्व
- शाला प्रबंधन के लिए नेतृत्व
आयाम 6 समावेश, स्वास्थ्य और सुरक्षा
शिक्षा के सार्वभौमिकरण का मूलमंत्र है “हर विद्यार्थी सीख सकता है”। विभिन्न लिंग, जाति अथवा सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से होने के बावजूद हर विद्यार्थी सीख सकता है, यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी कहता है। तदनुसार विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले सभी विद्यार्थियों को शाला के दायरे में लाना अनिवार्य हो जाता है।
आयाम 6 के मानक
- समावेश का वातावरण
- विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (सी.डब्ल्यू.एस.एन.)का समावेशन
- विद्यार्थियों की सुरक्षा
- भावनात्मक सुरक्षा
- स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई
आयाम 7 समुदाय की सहभागिता
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शाला को समुदाय के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। ‘समुदाय’ में शामिल हैं – शाला प्रबंधन समिति के सदस्य, शिक्षक, विद्यार्थी, माता-पिता/पालक, स्थानीय निवासी, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि, सांस्कृतिक संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के सदस्य आदि। शाला के संसाधनों का उपयोग, विद्यार्थियों का समग्र विकास और शाला का बेहतर प्रबंधन, समुदाय के साथ शाला की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर है। इसलिए शाला और समुदाय दोनों के लाभ के लिए इनमें एक सार्थक संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से प्रत्येक शाला में शाला प्रबंधन समिति का गठन किया गया है। ये समितियाँ शाला विकास की योजना बनाने, उनका क्रियान्वयन करने, इसके लिए संसाधन जुटाने और इन कार्यों की निगरानी के लिए योगदान देती हैं। नामांकन, ठहराव, सीखने-सिखाने और सीखने के परिणामों में सुधार करने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आयाम 7 के मानक
- शाला प्रबंधन समिति (एसएमसी) का गठन और प्रबंधन
- शाला प्रबंधन समिति का सशक्तिकरण
- शाला-समुदाय सहसम्बन्ध
- समुदाय, सीखने के संसाधन के रूप में
- समुदाय का सशक्तिकरण
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