Madhya Pradesh BJP: सरकार और संगठन मजबूत लेकिन महामंत्री हितानंद के लिए चुनौती भरे अगले दो साल Digital Education Portal
Madhya Pradesh BJP: मध्य प्रदेश विधानसभा व लोकसभा चुनाव के साथ संगठन में संतुलन की भी होगी परख।
Madhya Pradesh BJP: भोपाल (राज्य ब्यूरो)। सुहास भगत की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वापसी के बाद प्रदेश संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी मिलने के साथ ही हितानंद शर्मा के सामने कई चुनौतियां भी हैं। अगले दो सालों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने हैं, तो संगठन में जातीय और क्षेत्र के आधार पर संतुलन साधने में उनके सांगठनिक कौशल की परख होगी। इस पद की चुनौतियों का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि संघ के पूर्णकालिक सदस्य को ही मौका दिया जाता है। पार्टी की रीति-नीति में प्रदेश संगठन महामंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। पहले कई ऐसे मौके आ चुके हैं, जब प्रदेश संगठन महामंत्री ने प्रदेश अध्यक्ष के फैसलों को भी रोक दिया है।
2018 के चुनाव के बाद बनी सरकार 15 महीने में गिर जाने से कांग्रेस 2023 के लिए ठोस तैयारी के साथ आ सकती है। वहीं करीब 17 साल की भाजपा सरकार को लेकर एंटी इनकंबेंसी भी चुनौती बन सकती है। लोकसभा की 29 में 28 सीटें भाजपा के पास हैं। कांग्रेस से एकमात्र सीट लेने की कोशिश के साथ अपनी सभी सीटें बचाना बड़ी चुनौती है।
30 से अधिक नेता और उनके समर्थक
ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के अलावा भी विधायक अपने दलों को छा़ेडकर भाजपा में शामिल हुए। ऐसे विधायकों की संख्या करीब 28 है और उनके लाखों समर्थक भी हैं। ऐसे में पुराने और नए नेताओं के साथ समन्वय रखते हुए 2023 के विस चुनाव में उतरना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सक्रियता वर्ष 2020 में प्रदेश में शिवराज सरकार ने चौथी पारी शुरू की, वहीं संगठन में नई पीढ़ी को मौका देने की शुरुआत हुई।
इसमें कई वरिष्ठ कार्यकर्ता पीछे छूट गए। उन्हें सत्ता या संगठन में मनचाही भागीदारी के लिए इंतजार करने को कहा गया। ऐसे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना भी एक कठिन कार्य ही होगा। जातिगत समीकरणों की उलझन मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का मुद्दा सियासत को नई दिशा दे रहा है। इस पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने तर्क हैं और मैदानी जमावट की कोशिशें भी। प्रदेश में ओबीसी की आबादी भी निर्णायक स्थिति में है। ऐसे में ओबीसी को अपने पक्ष में करना बड़ी चुनौती है।
आबादी के मुताबिक आरक्षण और टिकट की मांग हुई तो भाजपा के सामने मुश्किलें खड़ी होंगी। आदिवासी कैसे आएंगे साथ वर्ष 2018 के विस चुनाव में भाजपा के सत्ता गंवाने की एक वजह आदिवासी यानी एसटी सीटों में आई कमी भी मानी गई थी। पार्टी के पास इस वर्ग के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत की है। ऐसे में बड़ी चुनौती होगी कि आदिवासी वर्ग को फिर से भाजपा की तरफ कैसे लाया जाए। एससी वर्ग को भी जोड़ने के लिए तैयारियां अभी से करनी होंगी।
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